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________________ १६४ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना में इस विषय का स्पष्ट उल्लेख मिल जाने से इस संबंध में अब हमें कोई शंका नहीं रही । इस थेरावली के लेखानुसार भी श्रुतकेवली भद्रबाहु कलिंग देश में कुमार पर्वत पर ( आजकल का 'खंडगिरि' जो विक्रम की १०वीं तथा ११वीं शताब्दी तक कुमार पर्वत कहलाता था) ही स्वर्गवासी हुए थे 1 थेरावली का शब्दानुवाद इस प्रकार है के पुत्र "अंतिम चतुर्दश पूर्वधर स्थविर श्री आर्य भद्रबाहु भी शकटाल मंत्री आर्य श्रीस्थूलभद्र को अपने पट्ट पर स्थापित करके श्रीमहावीर प्रभु के बाद १७० वर्ष व्यतीत होने पर पंद्रह दिन का निर्जल अनशन कर कलिंग देश के कुमार नामक पर्वत पर प्रतिमा ( ध्यान ) धारी होकर स्वर्गवासी हुए। " इसके बाद आर्य स्थूलभद्र, महागिरि और सुहस्ती का जिक्र है । आर्य महागिरि की प्रशंसा में "वुच्छिन्ने जिणकप्पे ०" तथा "जिणकप्पपरीकम्म" ये दो प्रसिद्ध गाथाएँ दी हैं, जिनमें दूसरी गाथा के तृतीय चरण में कुछ पाठांतर है । टीकाओं और दूसरी पट्टावलियों में इसका तृतीय चरण "सिट्ठिघरम्मि सुहत्थी" इस प्रकार है, तब यहाँ पर "कुमरगिरिम्मि सुहस्थी," यह पाठ है। चूणियों में जो आर्य महागिरि का वृत्तांत मिलता है उससे तो प्रथम प्रसिद्ध पाठ ही ठीक जँचता है, पर यहाँ तो साफ लिखा है कि आर्य सुहस्ती ने कुमार पर्वत पर आर्य महागिरि की स्तुति की थी, इसलिये यह भी एक स्पष्ट मतभेद ही समझना चाहिए । मगध के राजवंश आर्य महागिरि और सुहस्ती का प्रसंग छोड़कर आगे बिंबिसार ( श्रेणिक) और अजातशत्रु (कोणिक) तथा उदायी, नवनंद और मौर्य राज्यसंबंधी कतिपय घटनाओं का गद्य में वर्णन दिया है जो अवश्य दर्शनीय होने से हम उसका शब्दानुवाद नीचे देते हैं "उस काल और समय में, जब कि श्रमण भगवान् महावीर विचरते थे, राजगृह नगर में बिंबिसार उपनाम श्रेणिक राजा भगवान् महावीर का श्रेष्ठ श्रमणोपासक था, पार्श्वनाथ आदि के चरण युगलों से पवित्रित तथा साधुसाध्वियों से सेवित कलिंग देश के भूषण समान और तीर्थ-स्वरूप कुमार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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