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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
प्राचीन गणना निर्वाण से आरंभ होकर ६०५ वर्ष और ५ मास के अंत में शक संवत्सर से आ मिलती है और तब से दोनों संवत्सर आज तक उसी अंतर पर चले आ रहे हैं ।
विक्रमादित्य (बलमित्र) की मृत्यु के पीछे ५ वर्ष के उपरांत चले हुए मालवगण संवत् के साथ जब से विक्रम का नाम जडा और उसका व्यवहार में अधिक प्रयोग होने लगा१०८ तब से जैन लेखकों ने भी
और यदि कोई इस नाम वाला व्यक्ति हुआ भी हो तो उसका इस संवत्सर प्रवृत्ति के साथ कोई संबंध नहीं था । ।
हमारे विचार में यद्यपि यह संवत्सर विक्रमादित्य ने नहीं चलाया, पर उस समय में अथवा उसके आसपास के समय में 'विक्रम' नामक व्यक्ति का अस्तित्व मानने में कोई आपत्ति नहीं है । तित्थोगाली पइन्नय की कालगणना में निर्दिष्ट 'बलमित्र' ही वास्तव में संवत्सर संबंधित विक्रमादित्य है । उसका उज्जयिनी में राज्य हुआ, उसके बाद १३ वर्ष पर प्रचलित संवत्सर का आरंभ हुआ था जब कि बलमित्र-विक्रमादित्य को मरे पाँच वर्ष पूरे हो चुके थे, इस भाव को व्यक्त करनेवाली कई प्राचीन जैन गाथाएँ हैं जिनका हमने इसी लेख में यथास्थान उपयोग किया है । हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि शुरू में इस संवत्सर के साथ विक्रम का खास संबंध नहीं था यह बात ठीक है, पर इस नाम का कोई राजा ही नहीं हुआ यह नहीं कहा जा सकता । हाल-गाथा-सप्तशती में विक्रमादित्य की प्रशंसा में लिखी हुई एक गाथा उपलब्ध होती है । यदि यह गाथासप्तशती सातवाहन वंश के राजा हाल की अथवा उसके समय की कृति मानने में कोई आपत्ति नहीं है तो उसके पहले विक्रमादित्य नामक राजा का अस्तित्व मानने में भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए ।
१०८. मालवगण संवत् के साथ विक्रम नाम कब से लिखा जाने लगा इसका निश्चय होना मुश्किल है, क्योंकि नौवीं शताब्दी के पहले के किसी लेख में संवत् के साथ "विक्रम' शब्द लिखा हुआ नहीं मिलता, पर संभव है कि इसके बहुत पहले से यह संवत् विक्रम के नाम से प्रसिद्ध हो चुका होगा । जैसे शक संवत् पुराने समय में केवल 'संवत्' लिखा जाता था और कालांतर में 'शक संवत्' लिखा जाने लगा वैसे ही यह संवत् भी पहले विक्रम के नाम से पहिचाना जाता होगा, पर लिखने में केवल 'संवत्' लिखा जाता होगा और जब से शक संवत्, गुप्त संवत् आदि अनेक संवतों ने अपने विशेष नामों के साथ प्रचार पाया होगा तब से इस मालवा संवत् ने भी मालवा के प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य का नाम अपने साथ ले लिया होगा ।
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