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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
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और ब्रह्मांडपुराण में गर्दभिल्लों का राजत्वकाल सिर्फ ७२ वर्ष का लिखा है ।२७ 'तित्थोगाली पइन्नय' में गर्दभिल्लवंश्य राजाओं की संख्या तो नहीं पर उनका राजत्वकाल १०० वर्ष प्रमाण लिखा है, तब आचार्य मेरुतुंग गर्दभिल्ल १७, विक्रमादित्य ६० धर्मादित्य ४०, भाइल्ल ११, नाइल्ल १४ और नाहड़ १०, इस तरह गर्दभिल्ल आदि ६ पुरुषों में १५२ वर्षों का समावेश करते हैं,८ जो स्वाभाविक रीत्या अधिक है। मेरे मत से तो मेरुतुंग के विक्रमादित्य
और धर्मादित्य, बलमित्र और नभःसेन से भिन्न नहीं हैं । विक्रमादित्य और धर्मादित्य का राजत्वकाल मेरुतुंग क्रमशः ६० और ४० वर्ष का देते हैं, तब बलमित्र और नभःसेन ने भी अनुक्रम से ६० और ४० वर्ष तक राज्य किया था । मेरुतुंग विक्रमादित्य को गर्दभिल्ल का पुत्र लिखते१९ हैं, बलमित्र भी गर्दभिल्ल का पुत्र अथवा वंशज होना चाहिए, क्योंकि गर्दभिल्ल के बाद वह उज्जयिनी के राज्य का अधिकार प्राप्त करता है । बलमित्र-भानुमित्र १२ वर्ष तक उज्जयिनी का शासन करते हैं और इनके बाद संभवतः इन्हीं का पुत्र वा वंशज नभ:सेन ४० वर्ष तक उज्जयिनी का राज्य करता है, ये ५२ (१२ + ४० = ५२) वर्ष गर्दभिल्लों के १०० वर्षों में जोड़ देने से गर्दभिल्लों के
सप्तैव तु भविष्यंति, दशाभीयस्ततो नृपाः । सप्तगर्दभिनश्चापि, ततोऽथ दश वै शकाः ॥३५३॥"
-वायुपुराण उत्त० अ० ३७ । ९७. देखो टिप्पण नं० ९६ में उद्धृत ब्रह्मांडपुराण का श्लोक । ९८. देखो मेरुतुंगीय विचारश्रेणी का निम्नलिखित अवतरण
"xxx गर्दभिल्लः । १३ । शका: ४। एवं ४७० । तदनु विक्रमादित्यः ६० । धर्मादित्यः ४० । भाइल: ११ । नाइल: १४ । नाहङ: १० । एवं १३५ । उभयं ६०५।"
-विचारश्रेणि पत्र ३ । इस प्रकार मेरुतुंगसूरि शक संबंधी ४ वर्ष सहित ६ गर्दभिल्लीय राजाओं का राजत्वकाल १५२ वर्ष प्रमाण लिखते हैं ।
९९. देखो विचारश्रेणि का नीचे लिखा हुआ उल्लेख
"तदनु गर्दभिल्लस्यैव सुतेन विक्रमादित्येम' राज्ञोज्जयिन्या राज्यं प्राप्य सुवर्णपुरुषसिद्धिबलात् पृथिवीमनृणां कुर्वता विक्रमसंवत्सरः प्रवर्तितः ।"
-विचारश्रेणि पत्र ३ ।।
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