SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना नंदों की वर्षसंख्या बतानेवाले "पुण पण्णसयं" इस वाक्यांश के "पुण" शब्द का अशुद्धरूप "पण" होकर " पण्णसयं" के साथ मिल जाने से और "पणतीसा पूसमित्तस्स" इस वाक्य खंड के पंचवाचक "पण" शब्द के "पुण" होकर तीसा के पीछे चले जाने से दोनों जगह पाँच वर्ष की कमी बेशी हो गई, पर आखिरी संख्या बराबर रह जाने से यह सूक्ष्म भूल किसी के ध्यान में नहीं आई । आजकल की गाथाओं में मौर्य-काल- सूचक गाथांश"अट्ठसयं मुरियाणं" -यह है, पर इन गाथाओं के मूल ग्रंथ 'तित्थोगाली पइन्नय' में उक्त गाथांश जिन जिन ग्रंथों में प्रकरणों में राजत्व काल-गणना के उल्लेख हैं वहाँ सर्वत्र इसी प्रकार का कालनिर्देश है, केवल एक पुस्तक में (जिसका मैंने 'दुष्षमाकालगंडिकासार' इस नाम से पहले उल्लेख किया है) पालक का २० और नंदों का १५८ वर्ष का राज्यकाल लिखा है पर प्राचीन न होने की वजह से इस उल्लेख पर हम विश्वास नहीं कर सकते I १३७ आचार्य हेमचंद्र वीर निर्वाण से ६० वर्ष बीतने पर नंदराज्य का प्रारंभ बताते हैं, देखो निम्नलिखित परिशिष्ट पर्व का श्लोक "अनंतरं वर्धमान - स्वामिनिर्वाणवासरात् । गतायां षष्टिवत्सर्यामेष नंदोऽभवन्नृपः ॥२४३॥ - परिशिष्ट पर्व सर्ग ६ पत्र ६५ । इससे यह बात तो निश्चित है कि हेमचंद्र ने पालक संबंधी ६० वर्ष छोड़ नहीं दिए हैं, पर वे वी० सं० १५५ में मौर्य राज्य का प्रारंभ हुआ बताते हैं, यह एक नई हकीकत है । मालूम होता है कि हेमचंद्र पर नंदराज्य के १०० वर्ष बतानेवाले पुराणों का असर होगा जिससे नंदों के १५० वर्ष के स्थान केवल ९५ वर्ष ही मान लिए हैं। और ऐसा करके उन्होंने भद्रबाहु चंद्रगुप्त संबंधी दंतकथाओं को संगत करने तथा आर्य महागिरि और आर्य सुहस्ती के समय के साथ संप्रति के समय का समन्वय करने की बुद्धि से १५५ में चंद्रगुप्त का राजा होना लिख दिया है । मौर्य राजाओं और पुष्यमित्र का राजत्वकाल कितना था इसका हेमचंद्र के ग्रंथों में उल्लेख नहीं है, पर इनके पहले और पीछे के सभी ग्रंथों में यह गलत समय ही लिखा हुआ मिलता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy