SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना माथरी वाचना यह वाचना वीर निर्वाण से ८२७ और ८४० के बीच में किसी वर्ष में युगप्रधान आचार्य स्कंदिल सूरि की प्रमुखता में मथुरा नगरी में हुई थी,७२ एयं मे सामत्थं, भणइ अवणेहि मत्थतोगुंठि । तो णं केसविहूणं, केसिहि विणा पलोएति ॥१२॥ अह भणइ नंदराया, लाभो ते धीर नत्थि रोहियणं । बादति भाणिऊणं, अह सो संपत्थितो तत्तो ॥१३॥ अह भणइ नंदराया, वच्चइ गणियाघरं जइ कहिचि । तो णं असच्चवादि, तीसे पुरतो चिथाएमि (?) ॥९४|| सो कुलघरिसामिद्धि, गणियघरसंतियं च सामिद्धि । पाएण पणोल्लेउं, नीति णगरा अणवयक्खो । ॥९५।। जो एवं पव्वइओ, एवं सज्झायज्झाणउज्जुत्तो । गारवकरणेण हिओ, सीलभरुव्वहणधोरेओ ॥९६।। जह जह एही कालो, तह तह अप्पावराहसंरद्धा । अणगारा पडणीते, निसंसयं उवट्ठवेहिति ॥९७॥ उप्पायणीहि अवरे, केई विज्जा य उप्पइत्ताणं । विउरु विही विज्जाहि, दाइं काहिति उड्डाहं ॥९८॥ मंतेहि य चुन्नेहि य, कुच्छिय विज्जाहिं तह निमित्तेण । काउण उवग्घायं, भमिहिंति अणंतसंसारे ॥१९॥ अह भणइ थूलभद्दो, अण्णं रूवं न किचि काहामो । इच्छामि जाणिउं जे, अहयं चत्तारि पुव्वाइं ।।८००॥ नाहिसि तं पुव्वाई, सुयमेत्ताइं विभुग्गहा हिंति (?) । दस पुण ते अणुजाणे, जाण पणट्ठाई चत्तारि ॥८०१।। एतेण कारणेण उ पुरिसजुगे अट्टमंमि वीरस्स । सयराहेण पणट्ठाइं, जाण चत्तारि पुव्वाइं ॥८०२॥" __ - तित्थोगालि पइन्नय । ७२. वालभी स्थविरावली के लेखानुसार 'स्कंदिल' नाम के आचार्य महावीर के बाद के प्रधान स्थविरों में १३ वें पुरुष थे, जो निर्वाण संवत् ३७७ से ४१४ तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy