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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
ऊपर लिख दिया है, इसी वस्तु का विस्तारपूर्वक वर्णन करने वाली 'तित्थोगाली' की उन मूल गाथाओं को भी यहाँ अवतरित कर देते हैं, जिसमें प्राकृत भाषा के विद्वानों को इस विषय का मौलिक ग्रंथ देखने की भी सुविधा हो जाय ।
"सत्तमतो थिरबाहु जाणुयसीससुपडिच्छिय सुबाहु | नामेण भद्दबाहू अविही साधम्म सद्दोत्ति ( ? ) ॥७१४॥
सो विय चोद्दस पुव्वी बारसवासाई जोगपडिवन्नो । सुत्थेणं निबंध, अत्थं अज्झयणबंधस्स || ७१५॥
पलियं (धणियं) च अणावुट्ठी, तइया आसी य मज्झदेसस्स । दुभिक्खविप्पणट्ठा, अण्णं विसयं गता साहू ||१६||
कहवि विरहणाभीरुएहि, अइभीरुएहिं कम्माण | समणेहिं संकलिट्टं, पच्चक्खायाई भत्ताई ॥ १७॥
वेयड्ढकंदरासु य, नदीसु सेढीसमुद्दकूलेसु । इहलोग अपडिबद्धा य, तत्थ जयणाए वट्टंति ||१८|| ते आगया सुकाले, सग्गगमणसेसया ततो साहू । बहुयाणं वासाणं, मगहाविसयं अणुप्पत्ता ॥ १९॥ ते दाई एक्कमेक्कं, गयमयसेसा चिरं स दट्ठूण | परलोगगमणपच्चागय व्व मण्णंति अप्पाणं ||२०||
ते बिंति एक्कमेक्कं सज्झाओ कस्स कित्तिओ धरति । हंदि हु दुक्कालेणं अम्हं नट्ठो हु सज्झातो ॥२१॥
जं जस्स धरइ कंठे, तं परियट्टिऊण सव्वेसिं । तो हि पिंडिताई, तहियं एक्कारसंगाई ॥ २२॥
ते बिति सव्वसारस्स, दिट्टिवायरस नत्थि पडिसारे । कह पुव्वगण विणा य, पवयणसारं धरेहामो ॥ २३ ॥
समणस्स भद्दबाहुस्स, नवरि चोद्दसवि अपरिसेसाई । पुव्वाई अणत्थय उ, न कर्हिणिवि (०हिंवि) अस्थि पडिसारो ||२४||
सो विय चोद्दसवी बारसवासाई जोगपडिवन्नो ।
देज्ज न व देज्ज वा वायणंति वाहिप्पर ताव ॥ २५ ॥
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