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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
- उज्जयिनी में रहता हुआ संप्रति अवंति के अतिरिक्त सारे दक्षिणापथ और काठियावाड़ को अपने वश में कर लेता है६३ ।
"कि काहिसि अंधओ रज्जेणं, कुणालो भणति-मम पुत्तोत्थि संपती नाम कुमारो, दिन्नं रज्जं ।"
-बृहत्कल्प चूर्णि २२ । __ "+ + तस्य सुतः कुणालस्तन्नंदनस्त्रिखंडभोक्ता संप्रतिनामा भूपतिरभूत्, स च जातमात्र एव पितामहदत्तराज्यः ।"
-कल्पकिरणावली १६५ । निशीथ चूर्णि का विधान इससे भिन्न है । वहाँ संप्रति को कुमारभुक्ति में उज्जयिनी देने का उल्लेख है । देखो नीचे की पंक्ति
___ "उज्जेणी से कुमारभोत्ती दिण्णा ।" पर इन दोनों तरह के लेखों का तात्पर्यार्थ एक भी हो सकता है । कल्पचूर्णि के 'राज्य' शब्द का अर्थ 'यौवराज्यं' कर लेने पर संगति हो जाती है कि संप्रति को बचपन में ही अपने राज्य का उत्तराधिकारी युवराज बनाकर अशोक ने अवंति प्रदेश उसे कुमारभुक्ति में दे दिया था ।
६३. संप्रति ने काठियावाड़ और दक्षिणापथ को स्वाधीन किया ऐसा निशीथचूर्णि में लिखा हैं । देखो निम्नलिखित उल्लेख
"तेण सुरद्धाविसयो अंधा दमिला य ओयविया ।" इसी विषय में कल्पचूर्णिकार का मत इस प्रकार का है
"ताहे तेण संपइणा उज्जेणीआई काउं दक्षिणावहो सव्वो तत्थ ठिएण वि अज्जावितो ।"
काठियावाड़ और दक्षिणापथ को जीतने से संप्रति के संबंध में यह अनुमान हो सकता है कि पश्चिम और दक्षिण हिंदुस्थान में उसने युवराज अवस्था में ही अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर दी होगी । अशोक के मरण के बाद वह मगध के राजसिंहासन पर अभिषिक्त हुआ था यह बात भी बौद्धग्रंथों से जानी जाती है, पर आखिर तक पूर्व हिंदुस्थान में संप्रति की सत्ता कहाँ तक रही यह निश्चित नहीं कह सकते । पूर्वीय प्रदेश से जो दशरथ मौर्य के शिलालेख मिले हैं उनसे यह भी ध्वनित होता है कि 'देवानां प्रिय' के बाद मौर्य दशरथ का राज्याभिषेक हुआ था' । यदि 'देवानां प्रिय' केवल अशोक का ही बिरुद है तो इससे यह मानना पड़ेगा कि अशोक के बाद पूर्वीय हिंदुस्थान के कुछ प्रदेश पर अशोक के दूसरे पुत्र दशरथ का अधिकार था । आश्चर्य नहीं अंध अवस्था वीर-६
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