SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मरसायन -32 अथवास परमात्मायदिभवतिजगति दोषयुक्तोऽपि। तर्हि भीषणरूप:पुनः निशाचरः कीदृशोभवति।।9।। अथवा दोषयुक्त होकर भी, भीषण रूप वाला वह शंकर यदि जगत् में परमात्मा हो सकता है, तो फिर निशाचर कैसा होता है ? जो वहइ सिरे गंगा गिरिवधू वहइ अद्धदेहेन । णिच्चं भारवंतो कावडिवाहो जहा पुरिसो।।100 जइ एरिसो वि लोए कामुम्मत्तो वि होइ परमप्पो। तो कामुम्मत्तमणा घरे घरे किं ण परमप्पा ।।1011 यो वहति शिरसि गङ्गां गिरिवधूं वहति अर्धदहेन । नित्यंभाराकान्तः कावटिकावाहोयथापुरुषः॥100| यदिएतादृशोऽपिलोके कामोन्मत्तोऽपि भवति परमात्मा। तर्हि कामोन्मत्तमनसः गृहेगृहे किं न परमात्मानः||101|| जो सिर पर गंगा कोधारण करता है तथा शरीर के आधे भाग से पार्वती को धारण करता है, सर्वदा कावड़धारी पुरुष की भाँति भार से आक्रान्त रहता है; यदि इस प्रकार का काम से उन्मत्त व्यक्ति भी लोक में परमात्मा हो सकता है, तो फिर घरघर में काम से उन्मत्तमनवाले लोग परमात्मा क्यों नहीं हो सकते? जो वहइ एयगामं दुच्चइ लोयम्मि सो वि पाविट्ठो । वर्ल्ड पि जेण तिउरं परमप्पत्तं कहं तस्स ।।10211 यो दहति एकग्रामं उच्यते लोके सोऽपि पापिष्ठः । दग्धमपियेन त्रिपुरंपरमात्मत्वं कथं तस्य||102|| जो मनुष्य एक गाँव को जलाता है उसे संसार में अत्यन्त पापी (अधम) कहा जाता है, तो फिर जिसने त्रिपुर (धुलोक, अन्तरिक्ष तथा भूलोक में मय दानव के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002751
Book TitleDharmrasayana
Original Sutra AuthorPadmanandi
AuthorVinod Sharma
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy