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धर्मरसायन
वे नारकी, उस पापी की परस्त्री के सेवन की अभिलाषा के फलस्वरूप, उसका आगसेतपी हुई (अतः) लाललौह-प्रतिमाओं से आलिंगन करवाते हैं, जो प्रतिमाएँ उसके शरीर को जला डालती हैं।
तत्ताई भूषणाइं चित्ते परिहावंति अग्गिवण्णाई। ताइविडहंति अंगंपरमहिलाहिलासेणफलेण।।54|| तप्तानि भूषणानि चित्ते परिधारयन्ति अमिवर्णानि। तान्यति दहन्ति अङ्गं परमहिलाभिलाषेण फलेन ||54||
परस्त्रियों की अभिलाषा के फल के रूप में ,वेनारकी उस पापी के वक्ष पर तपेहुए (अतः) आग की तरह लाल आभूषणधारण कराते हैं । वे आभूषण भी उसके शरीर को जलाते हैं।
तस्स चडावंति पुणो णारइया कूडसम्मलीयाओ। तत्थ वि पावइ दुक्खं फाडिजंतम्मि देहम्मि ।।55।। तम् आरोहयन्ति पुनः नारकाः कूटशाल्मलीषु । तत्रापि प्राप्नोति दुःखं विदारिते देहे ।।55।।
पुनःवे नारकी उस पापी को तीक्ष्ण काँटों वाले कूटशाल्मली वृक्ष पर चढ़ाते हैं। वहाँ भी वह देह के विदीर्ण होने पर दुःख प्राप्त करता है।
जे परिमाणविरहिया परिग्गहा गेण्हिया भवे अण्णे। तेसिं फलेण गरूयं सिलिं चडावन्ति खंधम्मि 15811 येपरिमाणविरहिता:परिग्रहागृहीता भवेअन्यस्मिन्। तषां फलेन गुरुका शिलां धरन्ति स्कन्धे ।।56||
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