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-धर्मरसायन
पेलयन्ति यथा इथुन् यन्त्र निधाय तमवशम्। कुर्वन्ति चूर्णचूर्णं सर्वशरीरं मुशलैः ।।47||
वे नारकी उस परवश (पापी) को उठाकर ईख की तरह कोल्हू (यन्त्र) में पेरते हैं। उसके सम्पूर्ण शरीर को वेमूसलों से कूट-कूटकर चूर्ण-चूर्ण कर देते हैं।
चक्केहिं करकचेहि य अंगं फाडतिरोवमाणस्स। सिंचंति पापयम्मा पुणरवि खारेण सलिलेण 148॥ चक्रैः क्रकचैश्च अङ्गं विदारयन्ति रुदतः। सिञ्चन्तिपापकर्माणः पुनरपिशारेण सलिलेन||48||
वे नारकी चक्र अर्थात् एक तीक्ष्ण गोल अस्त्र और आरों से, रोते हुए उस पापी के शरीर को फाड़ डालते हैं और फिर क्षारयुक्त जल से वे उस पापी को नहलाते हैं।
चंपंति सव्वदेहं तिक्खसलाएहिं अग्गिवण्णाहिं। णहसंधिपएसेसु य भिंदति जलंति सूईहिं ।।4।। छिन्दन्ति सर्वदेहंतीक्ष्णशलाकाभि: अग्निवर्णाभिः । नखसन्धिप्रदेशेषुचभिन्दन्तिज्वलन्तीभिः सूचीभिः।।4।।
वे आग के समान लाल तीक्ष्ण शलाकाओं (कीलों) से उसके समस्त शरीर को छेद डालते हैं और नाखूनों के सन्धिस्थलों पर जलती हुई सुइयाँ चुभाते (घुसाते) हैं।
पाडिता भूमीए पाएहि मलंति पावयम्मस्स। सिंघाड्याण उवरि अंगे वेएण लोदंति ||50॥ पातयित्वा भूमौ पादैः मलन्ति पापकर्माणम् । सिंघाटकानामुपरिअङ्गे वेगेन दोलयन्ति।।50॥
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