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अपरिग्रह-सूत्र
(६२) ज्ञानी पुरुष, संयम-सापक उपकरणों के लेने और रखने में कही भी किसी भी प्रकार का ममत्व नहीं करते। और तो क्या, अपने शरीर तक पर भी ममता नहीं रखते।
संग्रह करना, यह अन्दर रहनेवाले लोभ की मज है। अतएव में मानता हूँ कि जो साधु मर्यादा-विरुख कुछ भी संग्रह करना चाहता है, वह गृहस्थ है-सा नहीं है।
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