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धर्म-सूत्र
(५) जिस प्रकार मूर्ख गाड़ीवान जान-बूझकर साफ-सुथरे राज-मार्ग को छोड़ विषम (ऊँचे-नीचे, ऊबड़-खाबड़) मार्ग पर जाता है और गाड़ी की धुरी टूट जाने पर शोक करता है
उसी प्रकार मूर्ख मनुष्य धर्म को छोड़ अधर्म को ग्रहण कर, अन्त में मृत्यु के मुंह में पढ़कर जीवन की धुरी टूट जाने पर शोक करता है।
जो रात और दिन एक बार अतीत की ओर चले जाते हैं, वे फिर कभी वापस नहीं पाते; जो मनुष्य अधर्म (पाप) करता है, उसके वे रात-दिन बिल्कुल निष्फल जाते हैं।
___ जो रात और दिन एक बार अतीत की ओर चले जाते हैं, वे फिर कभी वापस नहीं पाते; जो मनुष्य धर्म करता है उसके वे रात और दिन सफल हो जाते हैं।
जबतक बुढ़ापा नहीं सताता, जबतक व्याधियाँ नहीं बढ़तीं, जबतक इन्द्रियाँ हीन (अशक्त) नहीं होती, तबतक धर्म का भाचरण कर लेना चाहिये-बाद में कुछ नहीं होने का।
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