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महावीर और उनकी वाणी बुद्ध और महावीर भारतीय आकाश के दो उज्जवल नक्षत्र हैं. गुरु शुक्र के समान तेजस्वी और मंगल-दर्शन. बुद्ध का प्रकाश दुनिया में व्यापक फैल गया. महावीर का प्रकाश भारत के हृदय की गहराई में पैठ गया. बुद्धने मध्यम-मार्ग सिखाया. महावीर ने मध्यस्थ-दृष्टि दी. दोनों दयालु और अहिंसा-धर्मी थे. बुद्ध बोध-प्रधान थे, महावीर वीर्यवान तपस्वी थे।
बुद्ध और महावीर दोनों कर्मवीर थे. लेखन-वृत्ति उनमें नहीं थी. ये निग्रंथ थे. कोई शास्त्र रचना उन्होंने नहीं की. पर वे जो बोलते जाते थे, उसीमें से शास्त्र बनते थे. उनका बोलना सहज होता था. उनकी बिखरी हुई वाणी का संग्रह भी पीछे से लोगों को एकत्र करना पड़ा.
बुद्ध वाणी का एक छोटासा सारभूत संग्रह, धम्मपद के नाम से दो हजार साल पहिले ही हो चुका था, जो बौद्धसमाज में ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया में भगवद्गीता के समान प्रचलित हो गया है. महावीर की वाणी अभी तक जैनों के आगमादि ग्रंथों में, बिखरी पड़ी थी. उसमें से चुन करके, यह एक छोटासा संग्रह, आत्मार्थियों के उपयोग के लिये श्री रिषभदासजी की प्रेरणा से प्रकाशित किया गया है. वैसे तो इस पुस्तक की यह तीसरी आवृत्ति है. पर यह [२०]
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