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जातिमद- निवारण सूत्र
( ३०३ )
यह सुनिश्चित है कि प्रत्येक जीव भूतकाल में यानी अपने पूर्व-जन्मों में अनेक बार ऊँचे गोत्र में जन्मा है और अनेक बार नीच गोत्र में जनमा है ।
केवल इसी कारण से वह न हीन है और न उत्तम । इस प्रकार समझ कर ऐसा कौन होगा जो गोत्रवाद का अभिमान रखेगा ब मानवाद की बड़ाई करेगा ? ऐसी परिस्थिति में किस एकमें श्रासक्ति की जाय ? अर्थात् गोत्र या जाति के कारण कोई भी मनुष्य आसक्ति करने योग्य नहीं है, इसी लिये समझदार मनुष्य जाति या गोत्र के कारण किसी पर प्रसन्न नहीं होता ओर कोप भी नहीं करता
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समझ-बूझ कर, सोच-विचार कर सब प्राणियों के साथ सहानुभूति से वर्तना चाहिए और ऐसा समझने वाला ही समतायुक्त है।
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