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________________ ना जब अन्तरात्मा पर से) अजानकालिमाजन्य कर्म-पल की मोक्षमार्ग-सूत्र : १६१ (२६६) जब ( अन्तरात्मा पर से) अशानकालिमाजन्य कर्म-मल को दूर कर देता है, तब सर्वत्रगामी केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है। (२६७) - जब सर्वत्रगामी केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है, तब जिन तथा केवली होकर लोक और अलोक को जान लेता है। (२६८) जब केवलज्ञानी जिन लोक-अलोकरूप समस्त संसार को जान लेता है, तब ( अायु समाप्ति पर ) मन, वचन और शरीर की प्रवृत्ति का निरोध कर शैलेशी (अचल-अकम्प) अवस्था को प्राप्त होता है। (२६६) जब मन, वचन और शरीर के योगों का निरोध कर आत्मा शैलेशी अवस्था पाती है--पूर्णरूप से स्वन्दन-रहित हो जाती है, तब सब कर्मों को क्षय कर.--.-मुर्वथा मल रहित होकर सिद्धि (मुक्ति) को प्राप्त होती है। (३००) जब अात्मा सब कर्मों को क्षय कर-सर्वथा मलरहित होकर सिद्धि को पा लेती है, तब लोक के मस्तक पर--ऊपर के अग्र भागपर स्थित होकर सदा काल के लिए सिद्ध हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002750
Book TitleMahavira Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1953
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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