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मोक्षमार्ग-सूत्र
१५६ (२६१) जय (साधक) पुण्य, पाप, बन्ध र मोक्ष को जान लेता है, तब देवता और मनुष्य संबन्धी काम-भोगों की निगुणता जान लेता है--अर्थात् उनसे विरक्त हो जाता हैं !
(२६२) ___ जब देवता और मनुष्य संबन्धी समस्त काम-भोगों से (साधक) विरक्त हो जाता है, तब अन्दर और बाहर के सभी सांसारिक सम्बन्धों को छोड़ देता है।
(२६३) जब अन्दर और बाहर के समस्त सांसारिक सम्बन्धों को छेड़ देता है, तब मुण्डित (दीक्षित) होकर (साधक) पूर्णतया अनगार बृत्ति (मुनिचर्या) को प्राप्त करता है।
(२६४) जब मुण्डित होकर अनगार वृत्ति को प्राप्त करता है, तब (साधक) उत्कृष्ट संवर एवं अनुसर धर्म का स्पर्श करता है
(२६५) जब (साधक) उत्कृष्ट संवर एवं अनुत्तर धर्म का स्पर्श करता है, तब ( अन्तरात्मा पर से ) अज्ञानकालिमाजन्य कर्म-मल को झाड़ देता है।
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