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लोकतत्त्व-सूत्र
( २३५ )
तप दो प्रकार का बतलाया गया है—–बाह्य और श्रभ्यंतर | बाह्य तप छह प्रकार का कहा है, इसी प्रकार अभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का है ।
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( २३६ )
अनशन, ऊनंदरी, भिक्षाचरी, रसपरित्याग, काय - क्लेश और संलेखना ये बाह्य तप हैं ।
( २३७ ) प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग - ये अभ्यन्तर तप हैं ।
( २३८ )
कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म और शुक्ल — ये लेश्याश्रां के क्रमश: छह नाम हैं ।
( २३६ )
कृष्ण, नील, कापोत — ये तीन अधर्म - लेश्याएं हैं। इन तीनों से युक्त जीव दुर्गति में उत्पन्न होता है ।
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( २४० )
तेज, पद्म और शुक्ल — ये तीन धर्म- लेश्याएं हैं। इन तीनों से युक्त जीव सद्गति में उत्पन्न होता है ।
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