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अात्म-सूत्र
(२११) अात्मा हो. नरक की वैतरणो नदी तथा कूट शाल्मली वृक्ष है । आत्मा ही स्वर्ग की कामदुधा धेनु तथा नन्दनवन है ।
(२१२) अात्मा ही अपने दुःखों और सुखों का कर्ता तथा भक्ता है। अच्छे मार्ग पर चलने वाला आत्मा मित्र है, और बुरे मार्ग पर चलने वाला आत्मा शत्रु है।
(२१३) अपने-आपको हो दमन करना चाहिये । वास्तव में यहो कठिन है । अपने-अापको दमन करनेवाला इस लोक तथा परलोक में सुखो होता है।
(२१४) . दूसरे लोग मेरा वध बन्धनादि से दमन करें, इसकी अपेक्षा तो मैं संयम और तप के द्वारा अपने-अाप हो अपना (आत्मा का) दमन करू, यह अच्छा है।
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