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पण्डित - सूत्र
( १६८ )
पण्डित पुरुष को संसार भ्रमण के कारणरूप दुष्कर्म-पाशों का भली भांति विचार कर अपने आप स्वतन्त्ररूप से सत्य की खोज करना चाहिये, और सब जीवों पर मैत्रीभाव रखना चाहिये |
( १६६ )
जो मनुष्य सुन्दर और प्रिय भोगों को पाकर भी पीठ फेर लेता है, सब प्रकार से स्वाधीन भोगों का परित्याग कर देता है, वही सच्चा त्यागी कहलाता है ।
( २०० )
जो मनुष्य किसी परतन्त्रता के कारण वस्त्र, गन्ध, अलंकार, स्त्री और शयन आदि का उपभोग नहीं कर पाता, वह सच्चा त्यागी नहीं कहलाता ।
( २०५ )
जो बुद्धिमान मनुष्य मोहनिद्रा में सोते रहने वाले मनुष्यों के बीच रहकर संसार के छोटे-बड़े सभी प्राणियों को अपनी आत्मा के समान देखता है, इस महान् विश्व का निरीक्षण करता है, सर्वदा श्रप्रमत्त भाव से संयमाचरण में रत रहता है वही मोक्षगति का सच्चा अधिकारी है ।
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