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बाल-सूत्र
१.११ (१६२) जो मनुष्य अपने जीवन को अनियंत्रित ( उच्छखल ) रखने के कारण समाधि-योग से भ्रष्ट हो जाते हैं वे काम-भोगों में श्रासक्त होकर अन्त में असुरयोनि में उत्पन्न होते हैं।
(१६३) संसार के सब अविद्वान् ( मूर्ख) पुरुष दुःख भोगने वाले हैं। मूढ प्राणी अनंत संसार में बार बार लुप्त होते रहते हैं-जन्मते और मरते रहते हैं।
(१६४) मूर्ख जीवों का संसार में बार बार अकाम-मरण हुआ करता है; परन्तु पंडित पुरुषों का सकाम मरण एक बार ही होता हैउनका पुनर्जन्म नहीं होता।
(१६५) मूर्ख मनुष्य की मूर्खता तो देखो, जो धर्म छोड़कर, अधर्म को स्वीकार कर अधार्मिक हो जाता है, और अन्त में नरकगति को प्राप्त होता है।
(१६६) सत्य-धर्म के अनुगामी धीर पुरुष को धीरता देखो, जो अधर्म का परित्याग कर धार्मिक हो जाता है, और अन्त में देवलोक में उत्पन्न होता है।
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