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पढ़े हुए वेद बचा नहीं सकते; जिमाये हुए ब्राह्मण अन्धकार से अन्धकार में ही ले जाते हैं, पैदा किये हुए पुत्र भी रक्षा नहीं कर सकते; ऐसी दशा में कौन विवेकी पुरुष इन्हें स्वीकार करेगा?
(१७०) द्विपद (दास, दासी आदि), चतुष्पद (गाय, घोड़े मादि), क्षेत्र, गृह और धन-धान्य सब कुछ छोड़कर विवशता की दशा में प्राणो अपने कृत कर्मों के साथ अच्छे या बुरे परभव में चला जाता है।
(१७१) . जिस तरह सिंह हिरण को पकड़कर ले जाता है, उसी तरह अंतसमय मृत्यु भी मनुष्य को उठा ले जाती है। उस समय माता पिता, भाई श्रादि कोई भी उसके दुःख में भागीदार नहीं होतेपरलोक में उसके साथ नहीं जाते।
(१७२) संसार में जितने भी प्राणी हैं, सन अपने कृत कर्मों के कारण ही दुखी होते हैं। अच्छा या बुरा जैसा भी कर्म हो, . उसका फल भोगे बिना छुटकारा नहीं हो सकता।
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