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________________ काम-सूत्र चिरस्थायी नहीं है। भोग-विलास के साधनों से रहित पुरुष को भोग वैसे ही छोड़ देते हैं, जैसे फलविहीन वृक्ष को पक्षी। मानव-जीवन नश्वर है, उसमें भी आयु तो परिमित है, एक मोक्ष-मार्ग हो भविचज है, यह जानकर काम-भोगों से निवृत्त हो जाना चाहिए। (१६२) __ हे पुरुष ! मनुष्यों का जीवन अत्यन्त अल्प है-क्षणभंगुर है, अतः शीघ्र ही पापकर्म से निवृत्त हो जा। संसार में आसक्त तथा काम-भोगों से मूञ्छित असंयमी मनुष्य बार-बार मोह को प्राप्त होते रहते हैं। (१६३) समझो, इतना क्यों नहीं समझते ? परलोक में सम्यक बोधि का प्राप्त होना बड़ा कठिन है। बीती हुई रात्रियों कभी लौटकर नहीं पाती। फिर से मनुष्य-जीवन पाना आसान नहीं। (१६४) काम-भोग बड़ी मुश्किल से छूटते हैं, अधीर पुरुष तो इन्हें सहसा छोड़ ही नहीं सकते । परन्तु जो महावतों का पालन करने वाले साधुपुरुष हैं, वे ही दुस्तर भोग-समुद्र को तैर कर पार होते हैं, जैसे-व्यापारी वणिक समुद्र को। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002750
Book TitleMahavira Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1953
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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