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काम-सूत्र
(१५२) काम-भोग शल्यरूप हैं, विषरूप हैं और विषधर के समान हैं । काम-भोगों की लालसा रखने वाले प्राणी उन्हें प्राप्त किए बिना ही अतृप्त दशा में एक दिन दुर्गति को प्राप्त हो जाते हैं।
(१५३) गीत सब विजापरूप हैं; नाट्य सब विडम्बनारूप हैं; श्राभरण सब भाररूप हैं। अधिक क्या; संसार के जो भी काम-भोग हैं, सब-के-सब दुःखावह हैं।
(१५४) काम-भोग क्षणमात्र सुख देनेवाले हैं और चिरकाल तक दुःख देने वाले । उनमें सुख बहुत थोड़ा है, अत्यधिक दुःख-हो-दुःख है । मोक्ष-सुख के वे भयंकर शत्रु हैं, अनर्थों की खान हैं।
(१५५) जैसे विपाक फलों का परिणाम अच्छा नहीं होता, उसी प्रकार भोगे हुए भोगों का परिणाम भी अच्छा नहीं होता।
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