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कषाय-सूत्र
(१५१) क्रोध, मान; माया और लोभ-ये चार अन्तरात्मा के भयंकर दोष हैं । इनका पूर्णरूप से परित्याग करने वाले अन्त महर्षि न स्वयं पाप करते हैं और न दसरों से करवाते हैं।
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