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प्रमाद-स्थान-सूत्र
(१४०) काम-भोग अपने-आप न किसी मनुष्य में समभाव पैदा करते हैं और न किसी में राग-द्वेषरूप विकृति पैदा करते हैं। परन्तु मनुष्य स्वयं ही उनके प्रति राग-द्धष के नाना संकल्प बनाकर मोह से विकार-ग्रस्त हो जाता है ।
(१४१) अनादि काल से उत्पन्न होते रहने वाले सभी प्रकार के सांसारिक दुःखों से छूट जाने का यह मार्ग ज्ञानी पुरुषों ने बतलाया है। जो प्राणी उक्त मार्ग का अनुसरण करते हैं वे क्रमशः मोक्ष धाम प्राप्त कर अत्यन्त सुखी होते हैं ।
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