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________________ अप्रमाद-सूत्र (११६) प्राद-बहुल जीन अपने शुभाशुभ कर्मों के कारण अनन्त बार भव-चक्र में इधर से उधर धूमा करता है। हे गौतम ! क्षण-मात्र भी प्रमाद न कर। (११७) मनुष्य-जन्म पा लिया तो क्या ? आर्यस्व का मिलना बड़ा कठिन है। बहुत-से जीव मनुष्यत्व पाकर भी दस्यु और म्लेच्छ जातियों में जन्म लेते हैं। हे गौतम ! क्षण-मात्र भी प्रमाद न कर । (११८) श्राव पाकर भी पाँवों इन्द्रियों को परिपूर्ण पाना बड़ा कठिन है। बहुत-से लोग थार्य क्षेत्र में जन्म लेकर भी विकल इन्द्रियों वाले देखे जाते हैं। हे गौतम ! सण-मात्र भी प्रमाद न कर । (११६) पाँचों इन्द्रियाँ परिपूर्ण पाकर भी उत्तम धर्म का प्रवण माप्त होना कठिन है। बहुत से लोग पाखण्डी गुरुओं की सेवा किया करते हैं । हे गौतम ! क्षण मात्र भो प्रमाद न कर । (१२०) उत्तम धर्म का श्रवण पाकर भी उसेपर श्रद्धा का होना बड़ा कठिन है । बहुत-से लोग सब कुछ जान-बूझकर भी मिथ्यात्व की उपासना में ही लगे रहते हैं। हे गौतम !क्षण-मात्र भी प्रमाद न कर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002750
Book TitleMahavira Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1953
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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