SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 142 (७) पृष्ठ ७४ पर आये 'अयि जिनप.' इत्यादि संस्कृत गीत का हिन्दी पद्यानुवाद - हे जिनवर, छवि तेरी सुन्दर अतिनिर्मल भावोंवाली । काम-अग्नि किसको न जलावे, करके सबको मतवाली ॥१॥ हरि-हरादि भय-भीत होय सब, जिनवर, बने शस्त्र-धारी। असन वसन सब कोई चाहें, सबके धन तृष्णा भारी ॥२॥ तुमने भगवन् काम जलाया, भूख प्यास की व्याधि हरी, राग द्वेष से रहित हुए हो, वीतरागता अंग भरी ॥३॥ 'भूरा' यह भी आश करत है, कब मैं तुमसा बन जाऊं? राग रोषसे रहित, निरंजन, बन अविनाशी पद पाऊं ॥४॥ (८). पृष्ठ ७५-७६ पर आये 'छविरविकलरुपा' इत्यादि संस्कृत गीत का हिन्दी पद्यानुवाद - वसनाभरण-विभूषित जग की देव-मूर्तियां दीखें, उन्हें देख जग जन भी वैसी ही विभावना सीखें। वीतरागता दिखे न उनमें, और नहीं वे शम-धारी, सहज सुरूपा जिनमुद्रा यह, रक्षा करे हमारी ॥१॥ जिन-मुद्रामें लेश नहीं है, अहो किसी . भी दूषण का, मञ्जुल सुन्दर सहज शान्त है, काम नहीं आभूषण का । तीन भुवन को शान्ति-दायिनी, सहज शान्ति की अवतारी, सहज सुरूपा जिन-मुद्रा यह, रक्षा करे हमारी ॥२॥ जहां वंचना हो लक्ष्मीकी, तुम्हें देख दासी बन जाय, जग-वैभव सब फीके दीखें, जग की माया-मोह पलाय। जाऊं शरण उसी जिन-छविकी, जो लगती सबको प्यारी, सहज सुरूपा. जिन मुद्रा यह, रक्षा करे हमारी ॥३॥ जिसके दर्शन से जग-जन की, सब आकुलता मिट जावे, ऋद्धि-सिद्धिसे हो भर-पूरित, औ कुलीन पद को पावे । 'भूरा' की प्रभु अरज यही है, दूर होय विपदा सारी, सहज सुरूपा जिनमुद्रा यह, रक्षा करे हमारी ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002749
Book TitleSudarshanodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri, Hiralal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy