SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 80 | जिनवाणी जिनवाणी ||15,17 नवम्बर 2006 अशांति निवारण का उपाय है प्रत्याख्यान। यह क्रम व्यवस्थित एवं बुद्धिगम्य है। समता से प्रत्याख्यान तक की यात्रा विकास का आरोहण है। ____ आवश्यक के दो प्रकार हैं- द्रव्य और भाव। अन्यमनस्क होकर शब्दों का उच्चा'| करना द्रव्य आवश्यक है। जहाँ क्रिया और चेतना का संयोग हो, वह भाव आवश्यक है। 'द्रव्य-आवश्यक' में केवल यांत्रिकी क्रिया है, उससे साधना में तेजस्विता नहीं आती। यह प्राणरहित साधना है। द्रव्य में क्रिया का अन्धानुकरण है। एक ग्राम में पंडित जी प्रतिक्रमण करवा रहे थे। कहाँ उठना, कहाँ बैठना, लोग उनका अनुकरण कर रहे थे। पंडितजी को मिरगी का दौरा पड़ा । नीचे गिर गये। मुख में झाग आ गये। लोग भी यह देखकर सारे गिर पड़े। अनेक प्रयास करने पर भी मुख पर झाग नहीं आ सके। मन में अनुताप रह गया कि हमारी विधि पूरी नहीं हो सकी। द्रव्य क्रिया में ऐसा ही होता है। भाव में उपयोग पूर्वक क्रिया होती है। वह लोकोत्तर साधना है। जीवंत साधना है। धर्म में उसकी मूल्यवत्ता है। भाव-क्रिया समता की पर्याय है। समता से आत्मशक्तियों को केन्द्रित करके महान् ऊर्जा को प्रकट किया जा सकता है। द्वन्द्वों में संतुलन रखना नहीं आता वहाँ तनाव बढ़ता है, व्यक्ति खंडित हो जाता है। समता के अभाव में उपासना उपहास बन जाती है। जैनेतर धर्मों में प्रतिक्रमण जैन धर्म की तरह अन्य परम्पराओं में भी पाप मुक्ति के लिये अलग-अलग तरीके हैं - बौद्ध धर्म में 'प्रावरणा' शब्द का प्रयोग है। बुद्ध ने कहा- "जीवन में निर्मलता के लिये आलोचना कर पाप से मुक्त हुआ जा सकता है।" ___ वर्षावास के बाद भिक्षु संघ एकत्रित होता है। अपने कृत दोषों का गहराई से निरीक्षण करता है। वर्षावास में क्या-क्या दोष लगे, यह प्रावरणा है। इसमें दृष्ट, श्रुत, परिशंकित, पापों का परिमार्जन किया जाता है। परस्पर विनय का अनुमोदन होता है। सर्वप्रथम भिक्षु उत्तरासन को अपने कंधे पर रखकर कुक्कुट आसन में स्थित होकर हाथ जोड़ कर संघ से निवेदन करता है- मैं दोषों का आपके सामने प्रावरणा कर रहा हूँ। संघ मेरे अपराधों को बताये, मैं उनका स्पष्टीकरण करूँगा। इसे वह तीन बार दोहराता है। उसके बाद उससे छोटा भिक्षु, फिर सभी भिक्षु दोहराते हैं। अपने पापों की इस प्रकार पाक्षिक शुद्धि होती है। प्रावरणा चतुर्दशी, पूर्णिमा को की जाती है। वैदिक धर्म में संध्या का विधान है। यह धार्मिक अनुष्ठान है, जो प्रातः सायं दोनों समय किया जाता है। इस संध्या में विष्णुमंत्र के द्वारा शरीर पर जल छिड़क कर शरीर को पवित्र बनाने का विधान है। संध्या में अपने पाप की मुक्ति के लिए प्रभु से प्रार्थना की जाती है। पारसी धर्म में 'खोर देह अवेस्ता' ग्रन्थ में कहा है- “मेरे मन में जो बुरे विचार उत्पन्न हुए हों, वाणी से तुच्छ भाषा का प्रयोग किया हो, शरीर से अकृत्य किया हो, जो भी मैंने दुष्कृत्य किये हैं, मैं उसके लिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy