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जिनवाणी
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अनाचार बन जाता है।
प्रमादवश लोक प्रचलित रूढ़ियों से जिन्हें अनैतिक नहीं माना जाता, ऐसी बातों को भी धार्मिक दृष्टि से अतिचारों में रखकर चेतावनी दी गई, जैसे- कन्या के अन्तःपुर में रखी जाने वाली कन्या सगाई होने पर भी अपरिगृहीत है (आज के युग में धड़ल्ले से चल ही रहा है) अब यदि उसे छोड़ ही दिया जाता तो व्यक्ति को उसमें कुछ भी अनाचार - अतिचार ध्यान में नहीं आता । अतः उन-उन बिन्दुओं का समावेश करना, कितनी सुन्दर व्यवस्था है।
15, 17 नवम्बर 2006
अनाचार का कथन स्पष्टतः तो है नहीं । व्यक्ति सामाजिक परिवेश में उसे गलत भी नहीं मानता। जैसे- सस्ता माल खरीदना, रेल में बच्चे की उम्र कम बताना, आयकर में अन्यथा प्रतिवेदन देना आदि-आदि अतिचारों में सम्मिलित कर महर्षियों ने स्पष्ट रूपरेखा तो दिखा दी, संक्लिष्ट परिणामों से करने पर प्रायः सभी अतिचार अनाचार हैं। नासमझी, भूल, विवशता आदि कारणों से ये अतिचार हैं, व्रत की शुद्धि के लिये ये भी त्याज्य हैं।
जिज्ञासा - बड़ी संलेखना में मात्र अपने धर्माचार्य को ही नमस्कार किया है, अन्य आचार्यों व साधुसाध्वियों को क्यों नहीं?
समाधान- शरीर की अशक्तता, रुग्णता, वृद्धावस्था, आकस्मिक उपसर्ग, आतंक आदि कारणों में संलेखना संथारा किया जाता है । उस समय भी 'नमोत्थुणं' सिद्ध-अरिहन्त को देकर अपने धर्माचार्य धर्मगुरु के विशिष्ट उपकार होने से उन्हें यथाशक्य विधिपूर्वक वन्दना की जाती है। सभी साधुओं को वंदना कर पाने के सामर्थ्य की उस अवस्था में कल्पना करना कैसे युक्ति संगत समझा जा सकता है। किसी को करे किसी को नहीं तो क्या पक्षपात या रागद्वेष की संभावना नहीं । अब ५०० साधु, ५० साधु या १०-२० - २५ जितने भी हों, उन्हें वन्दना कैसे कर पायेगा, अतः समुच्चय सभी से क्षमायाचना माँग लेता है । प्रायः संथारा मृत्यु की सन्निकटता में पच्चक्खाया जाता है। अतः उतना समय भी नहीं है, इसलिये सामान्य व्यवस्था यही कर दी गई। सुदर्शन, अर्हन्त्रक आदि के समक्ष उपसर्ग उपस्थित है, अल्पावधि में भी सिद्ध - अरिहन्त को नमस्कार करके यथा शीघ्र पच्चक्खाण करते हैं । तब सभी साधुओं को वंदना कैसे संभव है। वर्तमान में अधिकतर संथारे के पच्चक्खाण में तो व्यक्ति मात्र लेटा-लेटा सुनता रहता है वो नमोत्थुणं या गुरुओं की वंदना भी विधिपूर्वक नहीं कर पाता है। वर्तमान व्यवस्था पर जाएँ, तीन वंदना कर लें तो भी उत्तम है।
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जिज्ञासा - आवश्यक सूत्र को बत्तीस आगमों में सम्मिलित किया गया है। क्या हरिभद्रसूरि को आवश्यकसूत्र का रचयिता माना जाता है? यदि यह सही है तो उनसे पूर्व प्रतिक्रमण किस प्रकार किया
जाता था?
समाधान- श्वेताम्बर परम्परा पूर्वधरों की रचना को आगम स्वीकार करती है। स्थानकवासी व तेरापंथी
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