________________
316 जिनवाणी
||15,17 नवम्बर 2006 उत्तर रात्रि भोजन त्याग को दसवें देसावगासिक व्रत के अन्तर्गत लेना युक्तिसंगत लगता है। दसवाँ व्रत । प्रायः छठे व सातवें व्रत का संक्षिप्त रूप एक दिन रात के लिए है। अतः जीवन पर्यन्त के रात्रि भोजन त्याग को सातवें व्रत में तथा एक रात्रि के लिये रात्रिभोजन-त्याग को दसवें व्रत में माना जाना
चाहिए। प्रश्न रात्रि-भोजन त्याग श्रावक व्रतों के पालन में किस प्रकार सहयोगी बनता है? उत्तर रात्रि-भोजन-त्याग श्रावक व्रतों के पालन में निम्न प्रकार से सहयोगी बनता है१. रात्रि-भोजन करने वाले गर्म भोजन की इच्छा से प्रायः रात्रि में भोजन संबंधी आरम्भ-समारम्भ
करते हैं। रात्रि में भोजन बनाते समय त्रस जीवों की भी विशेष हिंसा होती है, रात्रि-भोजन
त्याग से वह हिंसा रुक जाती है। २. माता-पिता आदि से छिपकर होटल आदि में खाने की आदत एवं उससे संबंधी झूठ से बचाव
होता है। ३. ब्रह्मचर्य पालन में सहजता आती है। ४. बहुत देर रात्रि तक व्यापार आदि न करके जल्दी घर आने से परिग्रह-आसक्ति में कमी आती
५. भोजन में काम आने वाले द्रव्यों की मर्यादा सीमित हो जाती है। ६. दिन में भोजन बनाने की अनुकूलता होने पर भी लोग रात्रि में भोजन बनाते हैं, किन्तु रात्रि
भोजन त्याग से रात्रि में होने वाली हिंसा का अनर्थदण्ड रुक जाता है। ७. सायंकालीन सामायिक-प्रतिक्रमण आदि का भी अवसर प्राप्त हो सकता है। घर में महिलाओं
को भी सामायिक-स्वाध्याय आदि का अवसर मिल सकता है। ८. उपवास आदि करने में भी अधिक बाधा नहीं आती, भूख-सहन करने की आदत बनती है,
जिससे अवसर आने पर उपवास-पौषध आदि भी किया जा सकता है। ९. सायंकाल के समय सहज ही सन्त-सतियों के आतिथ्य-सत्कार (गौचरी बहराना) का भी।
लाभ मिल सकता है। प्रश्न पौषध में किनका त्याग करना आवश्यक है? उत्तर पौषध में चारों प्रकार के सचित्त आहार का, अब्रह्म-सेवन का, स्वर्णाभूषणों का, शरीर की शोभा
विभूषा का, शस्त्र-मूसलादि का एवं अन्य सभी सावध कार्यों का त्याग करना आवश्यक है। प्रश्न पौषध कितने प्रकार के हैं? उत्तर पौषध दो प्रकार के हैं- १. प्रतिपूर्ण और २. देश पौषध। जो पौषध कम से कम आठ प्रहर के लिए
किया जाता है, वह प्रतिपूर्ण पौषध कहलाता है तथा जो पौषध कम से कम चार अथवा पाँच प्रहर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org