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________________ 309 |15,17 नवम्बर 2006|| | जिनवाणी 309 कायोत्सर्ग में काया के व्यापार के उत्सर्ग की प्रधानता है। अतः यहाँ काइओ-वाइओ-माणसिओ कहा गया। इसी प्रकार 'तस्स उत्तरी' का पाठ भी कायोत्सर्ग से पूर्व बोला जाता है वहाँ भी सर्वप्रथम 'ठाणेणं' यानी शरीर को स्थिर करके फिर ‘मोणेणं' यानी वचन योग को एवं तब ‘झाणेणं' यानी ध्यान लगाकर मनोयोग को नियंत्रित किया जाता है। प्रश्न प्रतिक्रमण से मोक्ष की प्राप्ति किस प्रकार संभव है? उत्तर आत्मा को परमात्मा बनने में सबसे बड़ी रुकावट उसके साथ लगे हुए कर्म ही हैं। ये संचित कर्म तप के द्वारा क्षय किये जाते हैं एवं नये आने वाले कर्मों को संवर द्वारा रोका जाता है। दशवैकालिक सूत्र में वर्णित है कि 'खवित्ता पुव्वकम्माइं तवेण य संजमेण।' प्रतिक्रमण में प्रथम आवश्यक द्वारा संवर की, द्वितीय एवं तृतीय आवश्यक में विनयतप की, चतुर्थ आवश्यक में प्रायश्चित्त तप की, पंचम आवश्यक में कायोत्सर्ग तप की एवं छठे आवश्यक में संवर की साधना की जाती है। अर्थात् आवश्यक में तप एवं संवर की आराधना होती है जिससे स्पष्ट होता है कि यह जीवन को सुधारने का श्रेष्ठ उपक्रम है, आध्यात्मिक जीवन की धुरी है। आत्मदोषों की आलोचना करने से पश्चात्ताप की भावना जागृत होने लगती है और उस पश्चात्ताप की अग्नि से सभी दोष जलकर नष्ट हो जाते प्रश्न ६४ इन्द्र किस प्रकार होते हैं? समझाइये। उत्तर इन्द्र देवगति में ही होते हैं। चार प्रकार के देवता कहे गए हैं- भवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक। भवनपति में उत्तर दिशा एवं दक्षिण दिशा में १०-१० यानी कुल २० तथा इसी प्रकार व्यंतर में १६ x २= ३२ इन्द्र होते हैं। ज्योतिषी में चन्द्र और सूर्य में दो इन्द्र होते हैं। वैमानिक में प्रथम से आठवें देवलोक तक एक-एक इन्द्र एवं नौवें-दसवें तथा ग्यारहवें-बारहवें देवलोक का एक-एक कुल १० इन्द्र हुए। इस प्रकार चारों जाति के क्रमशः २० +३२+२+१० = ६४ इन्द्र होते प्रश्न 'इच्छामि ठामि' के पाठ में कभी तो 'इच्छामि ठामि काउस्सग्गं' कभी ‘इच्छामि ठामि आलोउं' एवं कभी 'इच्छामि ठामि पडिक्कमिउं' बोला जाता है। यह अंतर क्यों? उत्तर कायोत्सर्ग की साधना के पूर्व में 'इच्छामि ठामि काउस्सगं' बोला जाता है क्योंकि कायोत्सर्ग की साधना की जा रही है। ध्यान के अंदर 'इच्छामि ठामि आलोउं' बोलते हैं क्योंकि दोषों/अतिचारों की आलोचना की जा रही है एवं प्रतिक्रमण आवश्यक में प्रतिक्रमण की प्रधानता के कारण 'इच्छामि ठामि पडिक्कमिउं' बोला जाता है। - १९२ बी, मीटरगेट लोको के सामने, मीटरगेज रेलवे कॉलोनी, बजरिया, सवाईमाधोपुर (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
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