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________________ जिनवाणी 15, 17 नवम्बर 2006 क्योंकि श्रावक गृहस्थ होने से परिग्रह का पूर्ण त्याग नहीं कर सकता । अंततोगत्वा तो परिग्रह भी त्यागने योग्य अर्थात् विरमण व्रत है। छठा दिशिव्रत और सातवाँ उपभोग- परिभोग व्रत परिमाण व्रत हैं। उनका सर्वथा त्याग नहीं हो सकने के कारण श्रावक इनकी मर्यादा करते हैं। नवमें से बारहवें तक अभ्यास की अपेक्षा शिक्षाव्रत हैं। प्रश्न 'इच्छामि खमासमणो' पाठ क्यों बोला जाता है? उत्तर 'इच्छामि खमासमणो' पाठ के द्वारा साधु-साध्वी जी को वंदना कर उनके प्रति हुई अविनय आशातना के लिए क्षमायाचना की जाती है। 298 प्रश्न व्रतों में लगे अतिचारों या दोषों की आलोचना १२ स्थूल पाठों से कर ली जाती है, फिर १२ व्रतों का प्राकृत पाठ पुनः क्यों बोला जाता है ? उत्तर १२ स्थूल पाठों में केवल अतिचारों का ही वर्णन है, उनमें १२ व्रतों का स्वरूप नहीं बताया गया है। अतः व्रतों के स्वरूप के स्मरण के साथ उनमें लगे अतिचारों के साथ १२ व्रत प्राकृत पाठ सहित पुनः बोले जाते हैं। प्रश्न श्रावक के व्रतों के कुल अतिचार कितने हैं, ज्ञानादि की दृष्टि से बताएँ । उत्तर श्रावक व्रतों के कुल अतिचार ९९ हैं। ज्ञान के १४, दर्शन के ५, चारित्र के (बारह व्रतों के ) ६०, कर्मादान के १५ तथा तप के ५ अतिचार बताए गये हैं । प्रश्न ज्ञान, दर्शन और चारित्र के अतिचार किन-किन पाठों से बोले जाते हैं ? उत्तर ज्ञान के १४ अतिचार 'आगमे तिविहे' के पाठ से, दर्शन के ५ अतिचार दर्शन सम्यक्त्व या 'अरिहंतो महदेवो' के पाठ से, चारित्र के ६० अतिचार १२ अणुव्रत या स्थूल के पाठों से (प्रत्येक के ५-५ अतिचार) तथा कर्मादान के १५ अतिचार पन्द्रह कर्मादान के पाठ से बोले जाते हैं। प्रश्न प्रतिक्रमण में ८४ लाख जीवयोनि के पाठ से सभी जीवों से क्षमायाचना की जाती है फिर 'आयरिय उवज्झाए' पाठ क्षमायाचना के लिए अलग और पहले क्यों बोला जाता है? उत्तर सामान्य रूप से सभी जीवों से क्षमायाचना से पूर्व आचार्य, उपाध्याय, साधु-साध्वी से क्षमायाचना वंदनीय, आदरणीय एवं बड़े होने के कारण पहले की जाती है, फिर अन्य सभी जीवों से क्षमायाचना की जाती है। इसके अलावा 'आयरिए उवज्झाए' में ८४ लाख जीवयोनि का खुलासा नहीं है। वह संक्षिप्त पाठ है। इसलिए खुलासे की दृष्टि से ८४ लाख जीवयोनि से क्षमायाचना का पाठ पुनः बोला जाता है। प्रश्न पौषधव्रत और बड़ी संलेखना की क्रिया प्रतिदिन नहीं करते। फिर दोनों पाठों का बोलना क्यों आवश्यक है ? उत्तर जैसे सैनिकों को प्रतिदिन युद्ध नहीं लड़ना पड़ता फिर भी परेड वे प्रतिदिन करते हैं, युद्ध का अभ्यास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
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