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||15,17 नवम्बर 2006|| | जिनवाणी
283 इनके अतिरिक्त विक्रम संवत् ११२२ में नमि साधु ने, संवत् १२२२ में श्री चन्द्रसूरि ने, संवत् १४४० में श्री ज्ञानसागर ने, संवत् १५०० में धीर सुन्दर ने, संवत् १५४० में, शुभवर्द्धनगिरि ने, संवत् १६९७ में हितरुचि ने तथा सन् १९५८ में पूज्य श्री घासीलाल जी महाराज ने भी आवश्यकसूत्र पर वृत्ति का निर्माण कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है।
___टीका युग समाप्त होने के पश्चात् जनसाधारण के लिये आगमों के शब्दार्थ करने वाली संक्षिप्त टीकाएँ बनाई गई जो स्तबक या टब्बा के नाम से विश्रुत हैं और वे लोकभाषाओं में सरल और सुबोध शैली में लिखी गईं। धर्मसिंह मुनि ने १८वीं शताब्दी में २७ आगमों पर बालावबोध टब्बे लिखे थे। उनके टब्बे मूलस्पर्शी अर्थ को स्पष्ट करने वाले हैं। उन्होंने आवश्यक पर भी टब्बा लिखा था।
___टब्बों के पश्चात् अनुवाद युग का प्रारम्भ हुआ। मुख्य रूप से आगम साहित्य का अनुवाद तीन भाषाओं में उपलब्ध है- अंग्रेजी, गुजराती और हिन्दी। आवश्यक सूत्र का अंग्रेजी अनुवाद नहीं हुआ है, गुजराती और हिन्दी में ही अनुवाद हुआ है। शोधप्रधान युग में आवश्यक सूत्र पर पंडित सुखलाल जी सिंघवी तथा उपाध्याय अमरमुनि जी प्रभृति विज्ञों ने विषय का विश्लेषण करने के लिये हिन्दी में शोध निबन्ध भी प्रकाशित किये हैं।
(आगम प्रकाशन समिति, व्यावर से प्रकाशित आवश्यकसूत्र की भूमिका से उद्धृत)
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