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________________ प्रतिक्रमण अपनाएँ मधुरव्याख्यानी श्री गौतममुनि जी म.सा. (तर्ज-बच्चे मन के सच्चे) Jain Education International देखो, खुद को देखो, क्यों बाहर मन भटकाएँ । आत्मशुद्धि का सच्चा साधन, प्रतिक्रमण अपनाएँ । देखो, खुद को..... भूल से जो होती घटना, पापों से पीछे हटना, प्रतिक्रमण का अर्थ यही, उच्चारण हो सही सही भाव सहित जो क्रिया करे, आराधकता वही वरे । इसीलिए जिनवाणी कहती, आज्ञा 15, 17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 28 धर्म निभाएँ ॥ १ ॥ देखो, खुद को.... भूल से मानो कभी अगर, खाने में आ जाए जहर, शीघ्र विरेचन यदि होता, असर नहीं रहने पाता । पाप जहर ना बढ़ पाए, प्रतिक्रमण यदि हो जाए, गुरु साक्षी से कर आलोचन, दोषमुक्त बन जाएँ ॥ २ ॥ ant..... देखो; खुद शुद्ध समकित हो रग-रग में, चाहे संकट हो मग में, गहरी हो निष्ठा व्रत में, नहीं प्रमाद हो सत्पथ में । चार कषाय से टलना है, अशुभ योग से बचना है, इन पाँचों के प्रतिक्रमण से, आराधक बन जाएँ ॥ ३ ॥ देखो, को..... खुद क्या पाया और क्या खोया, कितना आगे बढ़ पाया, अन्तर में हो अवलोकन, दूर करें जो हो दुर्गुण । शल्य मुक्त हो जाना है, वीतरागता पाना है, 'गौतम' से प्रभु फरमाते हैं, शुद्ध दशा को पाएँ ॥ ४ ॥ देखो, खुद को.... संकलन : सुमतिचन्द मेहता, पीपाड़ शहर ( दिनांक १८.९.२००६ को प्रतिक्रमण विषय पर प्रदत्त प्रवचन में उच्चरित कविता) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
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