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प्रतिक्रमण अपनाएँ
मधुरव्याख्यानी श्री गौतममुनि जी म.सा. (तर्ज-बच्चे मन के सच्चे)
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देखो, खुद को देखो, क्यों बाहर मन भटकाएँ । आत्मशुद्धि का सच्चा साधन, प्रतिक्रमण अपनाएँ । देखो, खुद को..... भूल से जो होती घटना, पापों से पीछे हटना, प्रतिक्रमण का अर्थ यही, उच्चारण हो सही सही भाव सहित जो क्रिया करे, आराधकता वही वरे । इसीलिए जिनवाणी कहती, आज्ञा
15, 17 नवम्बर 2006 जिनवाणी,
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धर्म निभाएँ ॥ १ ॥
देखो, खुद को....
भूल से मानो कभी अगर, खाने में आ जाए जहर, शीघ्र विरेचन यदि होता, असर नहीं रहने पाता । पाप जहर ना बढ़ पाए, प्रतिक्रमण यदि हो जाए, गुरु साक्षी से कर आलोचन, दोषमुक्त बन जाएँ ॥ २ ॥
ant.....
देखो;
खुद
शुद्ध समकित हो रग-रग में, चाहे संकट हो मग में, गहरी हो निष्ठा व्रत में, नहीं प्रमाद हो सत्पथ में । चार कषाय से टलना है, अशुभ योग से बचना है, इन पाँचों के प्रतिक्रमण से, आराधक बन जाएँ ॥ ३ ॥ देखो,
को.....
खुद
क्या पाया और क्या खोया, कितना आगे बढ़ पाया, अन्तर में हो अवलोकन, दूर करें जो हो दुर्गुण । शल्य मुक्त हो जाना है, वीतरागता पाना है, 'गौतम' से प्रभु फरमाते हैं, शुद्ध दशा को पाएँ ॥ ४ ॥
देखो, खुद को....
संकलन : सुमतिचन्द मेहता, पीपाड़ शहर
( दिनांक १८.९.२००६ को प्रतिक्रमण विषय पर प्रदत्त प्रवचन में उच्चरित कविता)
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