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268 | जिनवाणी
|15,17 नवम्बर 2006|| कालान्तर में या परलोक में मिले। हाँ, धर्म के साथ में पुण्य कर्म का बन्ध अवश्य होता है, जिसका फल कालान्तर या परलोक में भी मिलता है।
जिस प्रकार अनाज के साथ खाखला अर्थात् घास-फूस भी अवश्य उत्पन्न होता है उसी प्रकार धर्म कषायों की कमी या नाश होने को कहते हैं और कषायों की कमी के साथ जो मन, वचन, काया रूप योगों की शुभता होती है उससे पुण्य कर्म का भी बन्ध होता ही है। परन्तु पुण्य कर्म को धर्म मानना भी बड़ी भारी भूल है। शास्त्रकारों ने जब तक मिथ्यात्व है तब तक धर्म नहीं माना। कारण वहाँ पर अनन्तानुबन्धी आदि सभी कषायों का उदय एवं सद्भाव रहता है। मात्र योगों की शुभता जरूर' मानी है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य या देवलोक अथवा भौतिक सुख जो पुण्य के फल रूप मिलता है, वह प्राप्त हो सकता है।
___ धर्म का प्रारम्भ ही सम्यग्दर्शन के बिना नहीं होता और सम्यग् दर्शन में अनन्तानुबन्धी कषाय का क्षय या उपशम होना अनिवार्य माना गया है। सम्यग्दर्शन के अभाव में जो भी क्रिया धर्म क्रिया के नाम पर की जाती है वह धर्म न होकर मात्र पुण्य बन्ध का कारण बनती है। सम्यग्दर्शन के अभाव में मिथ्यात्व का ही प्रतिक्रमण नहीं होता तो अव्रत, प्रमाद और कषाय के सच्चे प्रतिक्रमण की तो बात ही कैसे की जा सकती है। फिर भी पाप से पुण्य अच्छा ही होता है इसलिये सम्यग्दृष्टि हो या मिथ्यादृष्टि अनुष्ठान के रूप में प्रतिक्रमण करना अच्छा ही है, परन्तु लक्ष्य कषायों की कमी का रखना आवश्यक है। ..
कषायों के स्वरूप को विस्तार से समझे बिना और जीवन में उनकी कमी या नाश हुए बिना वास्तविक शान्ति एवं सच्चा सुख मिलना संभव नहीं। जिन महापुरुषों ने कषाय का प्रतिक्रमण वास्तविक रूप में करके राग-द्वेष को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया है उन महापुरुषों के आदर्श अर्थात् वीतरागी, जिन या सर्वज्ञ केवलियों की राह पर चलकर समता के अतिक्रमण रूप राग, द्वेष एवं कषायों को निरन्तर कम करने का प्रयास करना प्रत्येक साधक का कर्तव्य है।
जिस प्रकार कषाय का प्रतिक्रमण वीतरागता धारण करने पर होता है उसी प्रकार मिथ्यात्व का प्रतिक्रमण सम्यक्त्व धारण करने पर, अव्रत का प्रतिक्रमण व्रत-प्रत्याख्यान धारण करने पर, प्रमाद का प्रतिक्रमण अप्रमत्त रहने पर तथा अशुभ योग का प्रतिक्रमण शुभ योग में प्रवृत्ति करने पर होता है। जब हम इन सभी प्रतिक्रमणों के अर्थ को भली प्रकार समझ कर अतिक्रमणों से बचेंगे तभी हम सही रूप में प्रतिक्रमण के सच्चे अधिकारी बन कर वीतरागता को प्रकट कर सच्चे एवं शाश्वत सुखा के अधिकारी बनेंगे।
-संगीता साडीज,,डागा बाजार, जोधपुर
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