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________________ ४४२ / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री अपने इन गुणों को खोती जा रही है। पहले स्त्रियों को हीन समझकर उसे जो नुकसान पहुँचाया और आज अगर पुरुष अपनी ही दौड़ में स्त्रियों को शामिल कर रहा है तो इससे स्त्रियों का ही नुकसान नहीं होगा, उसका भी पूरा जीवन नष्ट होगा | फिर घर घर नहीं रहेगा। सिर्फ मकान बनकर रह जाएगा। बच्चे पैदा होंगे लेकिन माता पुत्र जैसे संबंध नहीं होंगे। नर्स और बच्चे जैसा संबंध होगा । बच्चे का पालन पोषण घर में नहीं होगा बल्कि झूला घरों में नौकरों के द्वारा होगा। बच्चों में भविष्य में महानता की जो संभावनाएँ छुपी हुई हैं जिसे एक सुसंस्कारी माता प्रगट कर सकती है वह नष्ट हो जाएगी। एक माता को हजार शिक्षक के बराबर कहा है। क्योंकि बच्चे उनकी छाया में पलते हैं और वे जैसा चाहे उन बालक और बालिकाओं को परिवर्तित कर सकती है। पुरुषों के हाथ में कितनी ही ताकत हो लेकिन पुरुष एक दिन स्त्री की गोद में होता है वहीं से उसकी जीवन यात्रा शुरु होती है। वह माँ की छाया में ही बड़ा होता है। स्त्रियों के पास अद्भूत शक्ति स्वपित अवस्था में है। नारी शक्ति का कोई उपयोग नहीं हो सका है। एक बार स्त्री यदि पूर्णतः जागृत हो जाये तो वे एक ऐसी दुनियाँ को निर्मित कर सकती है, जहाँ युद्ध नहीं होगा, जहाँ हिंसा नहीं होगी, जहाँ चोरी, डकैती, आतंकवाद, अत्याचार नहीं होगा, जहाँ जीवन में कोई बीमारियाँ नहीं होगी । जहाँ चारों और शांत, तनावमुक्त वातावरण होगा। लेकिन यह तब ही हो सकता है जब स्त्रियाँ यह निर्णय करले कि उन्हें पुरुषों जैसा नहीं होना है। वे पुरुष से भिन्न है। उनकी चेतना, उनका व्यक्तित्त्व उनका शरीर, उनका मन किन्हीं अलग रास्तों से जीवन में गति करता है। पुरुषों से भिन्नता का स्पष्ट उन्हें बोध होना चाहिए। साथ ही अपनी शक्ति और अपने गुणों को विकसित करने का उन्हें बराबर अवसर मिलना चाहिए। पुरुषों की नकल नहीं स्त्री अपने ही गुणों में परिपूर्ण गरिमा को उपलब्ध हो इस दिशा में कदम उठाना जरुरी है। समय की मांग है कि बिना वक्त गवाएँ नारी उत्थान का एक प्रचण्ड आंदोलन खड़ा किया जाय। इसके लिए नारी को स्वयं आगे आना होगा। पुरुषों का अनुकरण नहीं बल्कि उसके खुद के विचार, खुद का अपना रास्ता होगा। इसके लिए सर्वप्रथम उन्हें निम्न कार्य करने होंगे। १. २. Jain Education International घरों, दुकानों तथा कमरों में टँगे हुए नारी को अपमानित करने वाले अश्लील चित्रों को हटाकर उनके स्थान पर प्रेरणाप्रद वाक्य या आदर्श चित्रों को लगायें । चुश्त कपड़े, पुरुषों जैसे वेशभूषा, व्यर्थ की फैशन, भद्दे श्रृंगार आदि का त्याग करके शालीन वेषभूषा धारण करना चाहिए । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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