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उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ४२७ सभी क्षेत्रों में उच्चचरित्र के मार्गदर्शन की नितान्त आवश्यकता अनुभव की जा रही है। यह मार्गदर्शन अध्यात्म से ही मिल सकता है।
यहाँ अध्यात्म से तात्पर्य किसी साम्प्रदायिक कट्टरता वाले धर्म से नहीं है। यहाँ अध्यात्म का तात्पर्य है अहिंसा, सत्य, प्रामाणिकता मैत्र्यादि भावना के विकास से हैं। उ. यशोविजयजी ने अध्यात्मोपनिषद में अध्यात्म का रुढ़ अर्थ बताते हुए कहा “सदाचार से पुष्ट तथा मैत्र्यादि भावना से भाक्ति निर्मल चित्त अध्यात्म है।"७६४ विनोबा भावे ने अध्यात्म की व्याख्या करते हुए तीन अनिवार्य निष्ठाएँ बताई थी (१) “निरपेक्ष नैतिक मूल्यों पर आस्था अर्थात् कभी सच कभी झूठ इस प्रकार की अवसरवादी मनोवृत्ति और दाम्भिक विचार नहीं रखना। (२) आत्मा की शाश्वतता का स्वीकार (३) जीवन की एकता और पवित्रता में विश्वास।"७६५
___उपर्युक्त अध्यात्म के नैतिक पक्ष को अगर राजनीति से जोड़ दिया जाय तो विनाशकारी युद्ध की कल्पना के भय से मुक्ति तथा सर्वत्र शांति स्थापित की जा सकती है। भारत तथा प्रगति सम्पन्न देशों के राजनेताओं की मदोन्मत मनःस्थिति से उबारने के लिए अध्यात्म का शामक अमृत जल पिलाया जाय।
इसी एक अध्यात्म की कमी के कारण समस्त विश्व की जनता क्षुब्ध और निराश होती चली जा रही है। विश्व रुस और अमेरिका के दो गुटों में बंटा हुआ है। शक्ति के अभाव में तटस्थ देशों की अभी अपनी कोई स्थिति नहीं है। दोनों गुट अपने संकुचित दृष्टिकोण के कारण अपने प्राधान्य और वर्चस्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अणु विज्ञान की तलवार इन लोगों के हाथ लग जाने से तीसरे अणुयुद्ध का खतरा दिन-दिन बढ़ता चला जा रहा है। यदि विश्व के दोनों गटों के राज्य संचालकों में इतनी दूरदर्शिता उत्पन्न हो जाय कि नाश की तैयारी छोड़कर, दुर्भावना और द्वेष छोड़कर परस्पर प्रेम तथा मैत्री भावना पूर्वक मिल जाय तो मानव जीवन को अधिक सुखी, अधिक सन्तुलित एवं अधिक समुन्नत बनाने का प्रयत्न करें तो स्वर्ग के समान दृश्य उपस्थित हो सकता है। करोड़ों व्यक्ति जो फौज में काम कर रहें हैं वे शिक्षा उत्पादन एवं अन्य जन कल्याण के कामों में संलग्न होकर प्रगति के लिए बहुत काम कर सकते हैं। इसी प्रकार जो धन युद्ध की तैयारी में खर्च होता है जितने श्रमिक और कारखाने इस प्रयोजन के लिए
७६४. रुढ्यर्थनिपुणास्त्वाहुश्चित्तं मैत्र्यादिवासितम्।
अध्यात्म निर्मलं बाहृव्यवहारोपवंहितम् ।।३१।। अध्यात्मोपनिषद - उ. यशोविजयजी ७६५. आत्मज्ञान और विज्ञान पृष्ठ २०, विनोबा भावे
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