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४०६/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
अधिक है। वहाँ करोड़ो रुपया प्रतिवर्ष नींद की गोलियों के लिए खर्च करना पड़ता है। यदि बाह्य उपकरण ही सुख के साधन होते तो शायद ऐसा नहीं होता। फ्रांस में भी मानसिक तनाव के रोगियों की संख्या इतनी बढ़ी है कि वहाँ के लोग यह अनुभव करने लगे कि आध्यात्मिकता का जीवन में प्रवेश नहीं हुआ तो हम समाप्त हो जायेंगे।"
तनाव का एक प्रमुख कारण महत्त्वाकांक्षा भी है। आज की शिक्षा में बचपन से ही बच्चों को प्रतिस्पर्धा (कांपिटिशन) या आगे बढ़ने की होड़ में खड़ा कर दिया है। प्रत्येक क्षेत्र में प्रथम आने की दौड़ मनुष्य को विक्षिप्त कर रही है। जहाँ तुल्यता (कम्पेरिजन) का बोध आया, वहीं कठिनाई शुरु हो जाती है। लेकिन सारी दुनियां आज कम्पेरिजन में खड़ी है। हर व्यक्ति सबसे आगे निकलने की दौड़ में है। अर्थाभाव होने पर भी खर्च का भार उठाकर व्यक्ति अपने बच्चों को नामी विद्यालयों में पढ़ाने की भावना रखता है। वह चाहता है कि मेरा बच्चा डॉक्टर हो, इंजिनियर हो, बड़े से बड़े पद को प्राप्त करे; यही आकांक्षा उसको जिंदगी भर तनाव से युक्त जीवन जीने को मजबूर कर देती है। आज पढ़े लिखे व्यक्ति और अमीर व्यक्ति अधिक असंतुलित हो गये हैं।
__ सुविधावादी दृष्टिकोण भी मानसिक अशांन्ति के लिए एक बहुत बड़ा कारण है। एक लालसा अंदर ही अंदर पनपती है कि प्रिय वस्तु का संयोग हो उसका कभी वियोग न हो और अप्रिय वस्तु या प्रतिकूल परिस्थिति का वियोग ही रहे उसका कभी संयोग न हो। उ. यशोविजयजी जी ने इसे आर्तध्यान की संज्ञा दी है। यह मानसिक तनाव का मुख्य हेतु है।
आचार्य महाप्रज्ञ ने अनुकूलता के प्रति गहरी आसक्ति और प्रतिकूलता के प्रति द्वेष की मनोवृत्ति वाले व्यक्ति के व्यवहार का चित्रण करते हुए उसे पाँच भागों में विभक्त किया है। (१) व्यवसाय आदि की असफलता होने पर हीनभाव से ग्रस्त हो
जाना।
दूसरे की संपदा पर विस्मय से अभिभूत हो जाना। (३) संपदा प्राप्त होने पर उसमें आसक्त हो जाना। (४) दूसरे की संपदा की इच्छा करना।
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