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६४ 0 जैन योग
लगा हुआ था । उसके सामने उस तुच्छ खप्पर का मूल्य ही क्या था ? किंतु खप्पर के संस्कार को तोड़ना उसके वश की बात नहीं थी । वह रोने लगा। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा-“मेरा खप्पर छूट रहा है, मेरे से बिछुड़ रहा है ।'' सेठ ने अपने कर्मचारियों से कहा-"ऐसा मत करो । खप्पर को मत फेंको । यह इसी के पास रहने दो ।' कर्मचारियों ने खप्पर उस भिखारी के पास रख दिया । खप्पर को पाकर वह स्वस्थ और शांत हो गया। उसे ऐसा लगा मानो सब कुछ पा लिया हो । उस भिखारी में भय था कि खप्पर छूट जाने पर कल क्या होगा ?
कोई भी आदमी पदार्थ के साथ जुड़े हुए भय को तब तक नहीं तोड़ सकता जब तक कि वह पदार्थ को नहीं छोड़ देता । जब तक पदार्थ की मूर्छा नहीं टूटती, संस्कारों की मूर्छा नहीं टूटती, शरीर की मूर्छा नहीं टूटती, तब तक भय को नहीं तोड़ा जा सकता, कभी नहीं मिटाया जा सकता | तनाव-विसर्जन : पहली शर्त
मनुष्य के मन में एक तनाव के बाद दूसरा तनाव उत्पन्न होता रहता है । भय की मूर्छा टूटते ही तनाव समाप्त होने लग जाते हैं, शांति उतर आती है । जब शांति उतर आती है तब दुःख-मुक्ति की भावना जागृत होती है । तनाव में आदमी की भावना दुःख-मुक्ति की नहीं होती । तनाव तनाव को पकड़ता है । आकाश-मंडल में सब प्रकार की ऊर्जाएं फैली हुई हैं । प्रत्येक ऊर्जा अपनी सजातीय ऊर्जा को खींचती है, पकड़ती है । तनाव से तनाव पकड़े जाते हैं । मन में इतने तनाव भर जाते हैं कि अब पागलपन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचता । जब तक तनावों का विसर्जन नहीं होता तब तक मानसिक ग्रंथियों का विकास नहीं होता है । हजारों उपदेश बेकार चले जाते हैं । उनका कोई असर नहीं होता । जब तक सारा मस्तिष्क, समूचा स्नायुसंस्थान, समूचा मन और शरीर-ये सब तनावों से भरे हुए हैं, ग्रंथियों से भरे हुए हैं तब रिक्त स्थान कहां है जहां उपदेश जाकर टिक सकें । तनाव में कोई उपदेश नहीं समा सकता । इसकी पहले चिकित्सा होनी चाहिए। तनावविसर्जन की चिकित्सा के साधन हैं-मानसिक प्रयोग, ध्यान, प्रेक्षा, अनुप्रेक्षा और भावना । उनके द्वारा सबसे पहले तनावों को बाहर निकालें, फिर कोई
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