________________
परिशिष्ट-२
आचारांग में प्रेक्षा-ध्यान के तत्त्व
-
१. सत्य की खोज
• पासह एगेवसीयमाणे अणत्तपण्णे । (६।५) तुम देखो, जो आत्मप्रज्ञा से शून्य हैं वे अवसाद को प्राप्त हो रहे हैं । • संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिया । (६/९)
अंधकार में होने वाले प्राणी अंध कहलाते हैं । अंधकार दो प्रकार का होता है
१. द्रव्य अंधकार-प्रकाश का अभाव २. भाव अंधकार-मिथ्यात्व और अज्ञान । अंध दो प्रकार के होते हैं१. द्रव्य अंध-चक्षु-विहीन । २. भाव-अंध-विवेक रहित ।
मिथ्यात्व और अज्ञान में रहने वाले मनुष्य विवेक-शून्य होते हैं । वे कर्म के उपादान और परिपाक को नहीं देख पाते । • सुपडिलेहिय सव्वतो सव्वयाए सम्ममेव समभिजाणिया ।
(५/११६)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org