________________
प्रयोग और परिणाम १८१
में तन्मय रहने का अभ्यास करें । जैसे-चलते समय केवल चलने का ही अनुभव हो, खाते समय केवल खाने का आदि । जो क्रिया करें उसकी स्मृति बनी रहे ।
दीर्घश्वास प्रेक्षा : अभ्यासक्रम
सुखासन या पद्मासन में स्थित हो कायोत्सर्ग करें | श्वास-प्रश्वास को प्रयत्नपूर्वक दीर्घ-लंबा करें। मन को नथुने में स्थापित करें । आते-जाते प्रत्येक श्वास को देखें । मन केवल श्वास को देखने में लगा रहे, और कोई विकल्प न किया जाए ।
दीर्घश्वास लयबद्ध होना चाहिए । प्रथम श्वास लेने में जितना समय लगे उतना ही समय अन्य श्वास लेने में लगना चाहिए । इसी प्रकार प्रश्वास में भी समान समय लगना अपेक्षित है ।
दीर्घश्वास के अभ्यास से सुप्त चैतन्य और शक्ति के केन्द्र जागृत होते हैं। हमारे शरीर में हृदय, भृकुटि, ललाट-मध्य, मस्तिष्क के मध्यभाग और लघु मस्तिष्क में विशिष्ट चैतन्य - केन्द्र हैं । प्रेक्षाध्यान की पद्धति में हृदयस्थ चैतन्य - केन्द्र को आनन्द - केन्द्र, भृकुटिस्थ चैतन्य- केन्द्र को दर्शन-केन्द्र, ललाटमध्यस्थ चैतन्य- केन्द्र को ज्योति - केन्द्र, मस्तिष्क मध्यभागस्थ चैतन्य-केन्द्र को ज्ञानकेन्द्र, लघुमस्तिष्कश्थ चैतन्य- केन्द्र को अतीन्द्रिय ज्ञान केन्द्र कहा जाता है ।
उपस्थ के पार्श्वभाग, नाभि, फुफ्फस कंठ और नासाग्र में विशिष्ट शक्ति केन्द्र हैं । प्रेक्षाध्यान-पद्धति के अनुसार गुदा स्थित केन्द्र को 'शक्तिकेन्द्र', उपस्थ के पार्श्वभाग - स्थित शक्ति केन्द्र को 'स्वास्थ्य -- केन्द्र', नाभिस्थित शक्ति केन्द्रों को 'तैजस-केन्द्र', फुफ्फस स्थित शक्ति केन्द्रों को 'नियामक केन्द्र', कंठ - स्थित शक्ति केन्द्रों को विशुद्धि-केन्द्र' और नासाग्रस्थित शक्ति केन्द्रों को 'प्राण - केन्द्र' कहा जाता है ।
समवृत्ति श्वासप्रेक्षा : अभ्यास-क्रम
सुखासन या पद्मासन में स्थित हो कायोत्सर्ग करें। जिस नथुने से श्वास आता हो उससे श्वास लें और दूसरे नथुने से निकालें । फिर जिससे निकाला
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org