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प्रेक्षा ध्यान
प्रेक्षा का अर्थ है-गहराई में उतरकर देखना | जानना और देखना चेतना का लक्षण है | आवृत्त चेतना में जानने और देखने की क्षमता क्षीण हो जाती है । उस क्षमता को विकसित करने का सूत्र है-जानो और देखो | आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो, स्थूल मन के द्वारा सूक्ष्म मन को देखो, स्थूल चेतना के द्वारा सूक्ष्म चेतना को देखो । देखना आत्मा का मूल तत्त्व है, इसलिए इस ध्यान-पद्धति का नाम 'प्रेक्षा ध्यान' है | यह विचय ध्यान के अभ्यास का ही एक प्रकार है । इसे 'दर्शन' या 'विपश्यना' भी कहा जाता है ।
देखना साधक का सबसे बड़ा सूत्र है । जब हम देखते हैं तब सोचते नहीं हैं और जब हम सोचते हैं तब देखते नहीं हैं । विचारों का जो सिलसिला चलता है उसे रोकने का सबसे पहला और सबसे अंतिम साधन है-देखना । कल्पना के चक्रव्यूह को तोड़ने का सशक्त उपाय है-देखना । आप स्थिर होकर अनिमेष चक्षु से किसी वस्तु को देखें, विचार समाप्त हो जाएंगे, विकल्प शून्य हो जाएंगे । आप स्थिर होकर अपने भीतर देखें-अपने विचारों को देखें या शरीर के प्रकंपनों को देखें तो आप पाएंगे कि विचार स्थगित हैं और विकल्प शून्य हैं । भीतर की गहराइयों को देखते-देखते सूक्ष्म शरीर को देखने लगेंगे। जो भीतरी सत्य को देख लेता है, उसमें सत्य को देखने की क्षमता अपने आप आ जाती है।
देखना वह है जहां केवल चैतन्य सक्रिय होता है | जहां प्रियता और
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