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पद्धति और उपलब्धि - १२३ हो जाता है । इनकी साधना के तत्त्व पहले बताए जा चुके हैं । तप से दुःख का निरोध भी होता है और क्षय भी होता है | तपोयोग की साधना के सूत्र
तपोयोग की साधना का प्रथम सूत्र है-आहारशुद्धि । अधिक आहार से मल संचित होते हैं । जिसके शरीर में मल संचित होते हैं उसका नाड़ीसंस्थान शुद्ध नहीं रहता और मन भी निर्मल नहीं रहता । ज्ञान और क्रिया-इन दोनों कीअभिव्यक्ति का माध्यम नाड़ी-संस्थान है । मलों के संचित होने पर ज्ञान और क्रिया-दोनों में अवरोध उत्पन्न हो जाता है । नाड़ी-संस्थान के कार्य में कोई अवरोध न हो,मन की निर्मलता बनी रहे, अपानवायु दूषित न हो-इन तथ्यों को ध्यान में रखकर साधक अपने आहार का चुनाव करता है । इन्हीं तथ्यों के आधार पर उपवास, मित भोजन और रस-परित्याग (गरिष्ठ भोजन का वर्जन) सुझाए गए हैं ।
तपोयोग की साधना का दूसरा सूत्र है-आसन या कायक्लेश | शरीरगत चैतन्य केन्द्रों को जागृत करने के लिए आसनों का अत्यन्त महत्त्व है । आसन करने वालों के लिए चैतन्य केन्द्रों का ज्ञान होना जरूरी है। उस ज्ञान के आधार पर ही अनुकूल आसनों का चयन किया जा सकता है । ध्यान के लिए भी विशेष आसानों का चयन किया जाता है ।' ___कायक्लेश का प्रयोजन शरीर को सताना नहीं, किन्तु साधना के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शरीर की क्षमता को विकसित करना है । सूर्य का आताप लेना कष्टपूर्ण कार्य हो सकता है, किन्तु उसका प्रयोजन है-तैजस शक्ति को बढ़ाना | सर्दी और गर्मी सहन करने के पीछे भी एक विशेष दृष्टिकोण है ।
तपोयोग की साधना का तीसरा सूत्र है-इन्द्रिय-संयम । इसकी साधना तीन प्रकार से की जा सकती है१. शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श-इन इन्द्रिय-विषयों का परित्याग
करें।
१. आसनों की विशेष जानकारी के लिए देखें- आचार्यश्री तुलसी कृत 'मनोनुशासनम् ।'
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