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अन्तर्यात्रा
अध्यात्म है अन्तर्यात्रा
अध्यात्म-साधना का अर्थ है-भीतर की यात्रा । हम बाहर से बहुत परिचित हैं | हमारे जीवन की पूरी-की-पूरी यात्रा ही बाहर की ओर हो रही है । हमारी शिक्षा भी हमें बाहर की ओर ले जाती है और हमारे अनुसंधान के सारे प्रयत्न भी हमें बाहर ही भटकाते हैं । भीतर की यात्रा करने का कोई अवकाश ही नहीं है । व्यक्ति बाहर में इतना व्यस्त है कि उसे कभी यह सोचने का मौका ही नहीं मिलता कि उसे भीतर की यात्रा भी करनी चाहिए | सचाई यह है कि बाहर में जितना है उससे बहुत अधिक है भीतर में । जो भीतर की यात्रा कर लेता है उसे बाहर का सत्य असत्य जैसा प्रतिभाषित होता है | किंतु भीतर की यात्रा करने का अवसर ही जब जीवन में नहीं आता तब यह जानने को ही नहीं मिलता कि भीतर में कोई सार या भीतर में कुछ ऐसा है जिसे देखना चाहिए, जानना चाहिए, अनुभव करना चाहिए । इसलिए अध्यात्म-साधना जरूरी है । इसके माध्यम से व्यक्ति अपने अन्तराल तक पहुंच सकता है । इसलिए शिक्षा और शोध के साथ अध्यात्म-साधना बहुत जरूरी है । जैसे दिन-भर का थका हुआ पक्षी अपने घोंसले में आकर विश्राम करता है वैसे ही बहिर्मुखी प्रवृत्तियों से त्रस्त या थका हुआ आदमी कहीं विश्राम ले सके, कहीं शांति का अनुभव कर सके, वह स्थान हो सकता है केवल
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