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साधना की भूमिकाएं - १०३ चेतन है-जब यह भेदज्ञान पुष्ट होता है तब एक बिंदु ऐसा आता है जिससे आगे का विकास प्रारंभ हो जाता है। वह है समत्व की प्रज्ञा । यह अध्यात्मविकास की दूसरी भूमिका है । इसका विकास प्रारंभ हो जाता है | इस मोड़ से जीवन का नया अध्याय शुरू हो जाता है। इसमें हेय को जानने की ही नहीं, किंतु हेय को छोड़ने की भी क्षमता आ जाती है । पर्यावरण विज्ञान और संतुलन
जब समत्व जागता है, जब मन समत्व में प्रतिष्ठित होता है, तब संतुलन की प्राप्ति होती है । संतुलन का अर्थ है-अहिंसा । अहिंसा का अर्थ है-संतुलन । अध्यात्म-जगत् में संतुलन पर महत्त्वपूर्ण खोजें हो चुकी हैं । विज्ञान ने अब इस पर खोज प्रारंभ कर दी है । विज्ञान की एक शाखा है-इकोलॉजी (Ecology) | इसका अर्थ है-पर्यावरण का विज्ञान । वैज्ञानिकों ने इस बात पर ध्यान दिया कि प्रकृति का यदि कोई भी अंश अस्त-व्यस्त रहता है तो प्रकृति का सारा चक्र ही अस्त-व्यस्त हो जाता है । क्योंकि प्रकृति का प्रत्येक अंश, प्रत्येक अवयव उसका महत्त्वपूर्ण हिस्सा है । वह महत्त्वपूर्ण इकाई है | वह टूटता है तो समूचा चक्का ही बेकाम हो जाता है । पर्यावरण विज्ञान का नया आयाम
पहले के जमाने में मनुष्य पर ही ध्यान था और यह माना जाता था कि मनुष्य ही सब कुछ है । फिर दूसरे प्राणियों पर ध्यान गया कि मनुष्य के लिए पशु उपयोगी हैं । पशुओं का मूल्यांकन किया गया । किंतु इस 'इकोलॉजी' ने एक नया आयाम खोल दिया । यह बात मान्य हो गई कि प्रकृति का छोटा-मोटा-प्रत्येक अवयव उपयोगी है, अनिवार्य है । अभी-अभी पर्यावरण-विशेषज्ञों ने आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज वनस्पति की बीस हजार उपजातियां उपलब्ध हैं । यदि उनकी सुरक्षा नहीं की गई तो बहुत बड़ी निधियां समाप्त हो जाएंगी । आज तक यह जाना ही नहीं गया कि किस वनस्पति में क्या विशेषता है ? ऐसी वनस्पतियां हैं जिनमें कैंसर जैसे असाध्य रोग को मिटाने की क्षमता है । ऐसी वनस्पतियां हैं जो मनुष्य के शरीर को संतुलित रखती हैं, रक्तचाप को संतुलित रखती हैं । यदि ये वनस्पतियां नष्ट
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