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समत्व
समत्व का जागरण
जैसे-जैसे ध्यान की क्षमता विकसित होती है, चित्त की स्थिरता जैसेजैसे बढ़ती है, वैसे-वैसे मन की क्षमता बढ़ती जाती है । मन चैतन्य और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है । चैतन्य का अखंड सूर्य हमारे भीतर विद्यमान है । अनन्त शक्ति का स्रोत हमारे भीतर है | बाहर उतनी ही शक्ति आती है, जितना माध्यम उसे प्राप्त होता है | कोई भी व्यक्ति भार उतना ही उठा पाता है, जितनी उसमें क्षमता होती है । बैलगाड़ी जितना भार वहन करती है, जलपोत उससे हजारों गुना भार वहन कर सकता है । जलपोत जितना भार वहन करता है, नौका उतना भार नहीं उठा सकती । जितनी-जितनी क्षमता, उतना ही भार-वहन | चंचल मन थोड़ा भार ही उठा सकता है, थोड़ा प्रकाश ही दे सकता है-उसमें इतनी ही क्षमता है । जब मन स्थिर होता है, चंचलता समाप्त होती है, ध्यान की क्षमता बढ़ती है, तब मन में शक्ति को वहन करने की क्षमता का विकास होता है और ज्ञान की ज्योति को प्रकट करने की क्षमता भी बढ़ जाती है। विकसित मन हमारे सामने हजारों संभावनाएं प्रकट कर देता है । जब ध्यान की क्षमता बढ़ती है तब मन में विशेष प्रकार के चैतन्य का जागरण होता है । वह है-समत्व | समत्व की प्रज्ञा जागृत होती है । शरीर भिन्न है, आत्मा भिन्न है; शरीर जड़ है, आत्मा
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