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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
शब्द के अश्रावणत्व और श्रावणत्व - दोनों पर्यायवाला होने से, अर्थात् विपक्ष-वृत्ति होने से विरुद्ध हेत्वाभास में ही अन्तर्भूत होता है ।
इसी प्रकार, कृतकत्व - हेतु भी आप बौद्धों द्वारा मान्य साध्य (सपक्ष) से विपरीत, कथंचित् - अनित्य और कथंचित्- नित्य - ऐसे घट-पट आदि साध्याभावरूप पदार्थों में, अर्थात् विपक्ष में और शब्द के शब्दत्व में भी हो सकता है, इसलिए हेतु की विपक्ष की व्यावृत्ति में शंका होने के कारण संदिग्ध विपक्ष - व्यावृत्ति नामक हेत्वाभास भी अनेकान्तिक- हेत्वाभास में अन्तर्भूत हो जाता हैं । इसी प्रकार, विरुद्ध-व्यभिचारी नामक अनेकान्तिक- हेत्वाभास का पृथक् अस्तित्व नहीं है।
'रत्नाकरावतारिका, भाग III, रत्नप्रभसूरि, पृ. 126
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