________________
सज्जणवज्जा
महणम्मि ससी महणम्मि सुरतरू महणसंभवा लच्छी। सुयणो उण कहसु महं न याणिमो कत्थ संभूओ ॥ ३२ ॥ सुयणो सुद्धसहावो मइलिज्जन्तो वि दुज्जणयणेण । छारेण दप्पणो विय अहिययरं निम्मलो होइ ॥ ३३ ॥ सुजणो न कुप्पइ चिय अह कुम्पइ मङ्गुलं न चिन्तेइ । अह चिन्तेइ न जम्पइ अह जम्पइ लज्जिरो होइ ॥ ३४ ॥ दढरोसकलसियस्स वि सुयणस्स मुहाउ विप्पियं कत्तो। राहुमुहम्मि वि ससिणो किरणा अमयं चिय मुयन्ति ॥ ३५॥ दिवा हरन्ति दुक्खं जम्पन्ता देन्ति सयलसोक्खाई । एवं विहिणा सुकयं सुयणा जं निम्मिया भुवणे ॥ ३६॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org