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________________ एक बार वहाँ आये हुए एक हाथी के पाँव तले कुचलकर वे सब मरकर लम्बे समय तक कु-योनि में भटकते रहे। उस दौरान बहुत सारे कष्ट भोगकर कुछ पुण्य की पूँजी एकत्रित की और सगर चक्री के पुत्रों के रूप में उत्पन्न हुए। पूर्व में संघ की आशातना से उनके बहुत से कर्म कट गये थे और जो कर्म शेष रह गये थे उसके लिए उन्हें इस भव में एक साथ अग्नि द्वारा मृत्यु को गले लगाना पड़ा। _निःसंदेह, दुष्कर्मों का फल उन्हें भुगतना पड़ा किन्तु तीर्थ-रक्षा के शुभ-परिणाम के फलस्वरूप उन्होंने देवगति भी प्राप्त की। जंगम (संघ स्वरूप) तीर्थ की आराधना से वे अग्नि-शरण हुए। स्थावर (अष्टापद) तीर्थ की आराधना से वे अमर (देव) हुए। चोरों को हित वचन कहने वाला कुम्हार भी मृत्यु के बाद अन्यत्र धनवान श्रेष्ठि बना। कालान्तर में पुण्य उपार्जन करके राजा बना। और दीक्षा प्राप्त करके स्वर्ग में गया। और वही कुम्हार का जीव भगीरथ सगर के पौत्र (जह्न के पुत्र) के रूप में उत्पन्न हुए। भगीरथ ने तीर्थ की आशातना एवं आराधना के फल को प्रत्यक्ष देख-सुनकर ज्ञानी भगवन्त के समक्ष श्रावक व्रत का उच्चरण किया और नगर को लौटा। सद्गुरु ..तीर्थाधिराज है। उनका विनय-बहुमान .....................गुणाधिराज है। उनकी आशिष मिले वह दिन ............पर्वाधिराज है। उनका नाम-मंत्र ..... मंत्राधिराज है। उनकी सेवा का रस ..................... रसाधिराज है। गुरु-कृपा-प्राप्त शिष्य .............. .सर्वाधिराज है। -मुनि आत्मदर्शन वि. Jain Education International ★५२★ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002740
Book TitleAnant Akash me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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