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________________ F 82799 उन चोरों में से एक चोर निकट के गाँव में चोरी करके लौट रहा था, इसी बीच जिसके घर चोरी हुई थी उसने कोतवाल से शिकायत कर दी। कोतवाल कुछ सैनिकों के साथ उस चोर का सूत्र ढूँढ़ते-ढूँढ़ते चोरों के उस प्रदेश तक आ पहुँचा, किन्तु उससे पहले ही चोर गाँव में ही कहीं छुप गया। इससे क्रोधित होकर कोतवाल ने उस गाँव के सारे द्वार बन्द करवा दिये। (जिससे कोई बाहर न निकल सके।) और गाँव के चारों ओर आग लगा दी। थोड़ी ही देर में साठ हजार लुटेरे जलकर मर गये। सौभाग्य से चोरों को हित-वचन कहने वाला वह कुम्हार उस समय कहीं बाहर गया था।, अतः वी अग्नि-दुर्घटना से बच गया। इस प्रकार जंगम तीर्थ समान श्री संघ की आशातना ने उन चोरों को उसी भव में चमत्कार दिखा दिया। कर्म कहता है- मेरे यहाँ देर है, पर अँधेर नहीं अर्थात् देर से ही सही, कर्मों का फल अवश्य मिलता है। अत्युत्कृष्ट स्तर के पुण्य या पाप का फल तुरन्त मिल जाता है। और इसी जन्म में अपना प्रभाव दिखा देता है। उसमें भी देव-गुरु-धर्म (तत्त्वत्रयी) और ज्ञान-दर्शन-चारित्र (रत्नत्रयी) की आशातना का फल तो भयंकर विपत्तियों के साथ मनुष्य पर टूट पड़ता है। इसलिए परमेष्ठि भगवंतों या श्री संघ की आराधना कम-ज्यादा हो तो चल सकता है। परन्तु जानबूझ कर की गई आशातना के लिए हमें क्षमा नहीं मिल सकती। लुटेरे आग में जलकर राख हो गये किन्तु उनका कर्म जीवित था जो कि अग्नि शरण नहीं हुआ था। यह याद रखना चाहिए कि हँसते-हँसते किया हुआ छोटा-सा पापकर्म भी-प्रायश्चित्त न करने से मेरु (पर्वत) सा विशाल होकर बदला लेने के लिए पूरी तैयारी के साथ मनुष्य पर टूट पड़ता है। कुकर्मों को जीवित रखकर मरना, कुत्ते की मौत मरने के समान है, अर्थात् पाप कर्मों का बोझ लेकर नहीं मरना चाहिए। सारे लुटेरे मरकर जंगल में सूक्ष्म जीवों के रूप में उत्पन्न हुए। Fort Mattersonal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002740
Book TitleAnant Akash me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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